गरा: अभी एक साल भी नहीं हुआ, जब शिक्षामित्र से सहायक अध्यापक बनने की खुशी मिली थी। ऐसा लगा मानो वर्षो की तपस्या का फल मिल गया। अब बच्चों को पालने के लिए रात को चौकीदारी नहीं करनी पडे़गी, लेकिन सब कुछ खत्म हो गया। यह दर्द है बरौली अहीर के शिक्षामित्र रतीराम का।
बरौली अहीर निवासी रतीराम वर्तमान में जैतपुर ब्लॉक में प्राथमिक विद्यालय में सहायक अध्यापक पद पर तैनात हैं। इनकी आर्थिक स्थिति तंग है। मानदेय में परिवार का भरणपोषण नहीं हो पाता था। इसलिए दिन में विद्यालय में बच्चों को पढ़ाने के बाद रात में चौकीदार करते थे। इतना ही नहीं छुट्टी के दिन मजदूरी भी करते थे। रतीराम ने बताया कि एक साल पहले सहायक अध्यापक बनने पर वेतन 30 हजार रुपए हो गया तो उन्हें लगा कि अब सारे कष्ट मिट जाएंगे। मगर अच्छे दिन आने से पहले ही सारी खुशियां मिट गई। रतीराम का कहना है कि कोर्ट के इस निर्णय से वह बहुत परेशान हैं। समझ नहीं आ रहा है कि क्या करें। ऐसा ही कुछ हाल नगर क्षेत्र में तैनात शिक्षामित्र विकास का है। घर में वृद्ध मां है। बड़ा भाई मानसिक रूप से बीमार है। खुद का भी परिवार है। विकास ने बताया कि 14 साल से इसी आस पर नौकरी कर रहे थे कि एक दिन परमानेंट हो जाएंगे और अच्छा वेतन मिलेगा। उम्मीद पूरी भी हुई। वेतन मिला तो खुशी भी बहुत हुई। मगर, अब फिर से 3500 रुपए में परिवार चलाना मुश्किल होगा। पुराने दिन के बारे में सोचते हुए उनकी आंखों में आंसू आ गए।
अब फिर कर्जा लेना पडे़गा
शिक्षामित्रों ने बताया कि 3500 रुपए मानदेय में किसी का भी परिवार नहीं चलता। ऐसे में अधिकतर शिक्षामित्र कर्जे में डूबे थे। समायोजन के बाद एक साथ मिले वेतन से कर्जा उतार दिया। मगर, अब फिर से वही स्थिति सामने आ गई है।
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कइयों के टूटे गए रिश्ते
कोर्ट के निर्णय के बाद कई शिक्षामित्रों को तगड़ा झटका लगा है। इस झटके से उनके परिवार वाले भी परेशान हैं। सहायक अध्यापक बनने पर बेटों के लिए अच्छा रिश्ता तलाशा। लड़की वालों ने भी सरकारी नौकरी देख रिश्ता तय करने में देर न लगाई। मगर, जैसे ही कोर्ट का निर्णय आया लड़की वालों ने भी हाथ खींच लिए। सैंया के राजीव शर्मा और तेहरा के नंदकिशोर समेत करीब एक दर्जन शिक्षामित्र ऐसे हैं जिनका संबंध दो दिन में टूट गया है।
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