इलाहाबाद। उत्तर प्रदेश के सहायता प्राप्त एवं मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्थानों में मिड डे मील योजना के अंतर्गत बच्चों के लिए खाना पकाने तथा जूठे बर्तन मांजने को लेकर शिक्षकों पर राज्य सरकार दबाव डाल रही है। इससे न केवल शिक्षण कार्य में बाधा पड़ रही है बल्कि अन्य शैक्षिक कार्यक्रम भी बाधित हो रहे हैं।
यह हाल तब है जब इलाहाबाद उच्च न्यायालय राज्य सरकार से बार-बार पूछ रहा है कि क्या सरकार शिक्षकों को शिक्षण एवं अन्य शैक्षिक कार्य छोड़कर मिड डे मील का खाना पकाने के लिए बाध्य कर सकती है? लेकिन राज्य सरकार इसका जवाब ही नहीं दे रही है। न्यायमूर्ति अरुण टंडन एवं न्यायमूर्ति अश्वनी कुमार मिश्र की खंडपीठ ने स्पेशल अपील 634/2015 जीतनारायण सिंह बनाम उ.प्र. एवं 6 अन्य से संबंधित विभाग के सचिव को 29 अक्टूबर 2015 तक हलफनामा दाखिल कर कोर्ट को यह बताने के लिए कहा है कि राज्य सरकार शिक्षकों को पढ़ाने और अन्य शैक्षिक कार्य करने पर जोर देने के बजाय मिड डे मील का खाना बनाने और जूठे बर्तन मांजने के लिए क्यों दबाव डाल रही है। यदि राज्य सरकार मिड डे मील के वितरण में रुचि रखती है तो सरकार को प्रत्येक शिक्षण संस्थान में इस कार्य के लिए सुयोग्य व्यक्ति की जरूरत के अनुसार नियुक्ति करनी चाहिए। कोर्ट ने इसके लिए निलंबित शिक्षक के निलंबन पर रोक लगा दी है। शिक्षकों पर मिड डे मील का खाना बनाने और बर्तन साफ करने के मामले में उत्तर प्रधानाचार्य परिषद (पंजीकृत), उ.प्र. प्रधानाचार्य परिषद मेरठ तथा वेद प्रकाश शर्मा एवं अन्य ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में पीआईएल दाखिल कर रखी है, जिस पर कोर्ट ने स्थगनादेश भी पारित किया है। इसके बावजूद इलाहाबाद सहित प्रदेश के अन्य जिलों में जिला विद्यालय निरीक्षक (जिविनि) स्तर से मिड डे मील का खाना नहीं बनाने और बर्तन नहीं मांजने पर कहीं शिक्षकों को निलंबित किया जा रहा है तो कहीं शिक्षकों का वेतन रोक दिया जा रहा है।
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