भदोही : बस्ते का भारी भरकम बोझ नौनिहालों के स्वास्थ्य के लिए घातक साबित हो सकता है। अपने से आधे वजन का बस्ता ढो रहे बच्चों में पीठ संबंधी बीमारियों की आशंका बढ़ गई है। इसको लेकर अभिभावक चिंतित तो हैं लेकिन रोकथाम की दिशा में कोई प्रयास नहीं किया जा रहा है। 1 कहा जाता है कि बालमन कच्चे घड़े की तरह होता है। उसे जिस रूप में चाहें ढाल सकते हैं। ठीक उसी तरह बाल शरीर भी बेहद कोमल होता है। मामूली बोझ भी शारीरिक व मानसिक संरचना को तहस नहस कर सकता है। बावजूद इसके शिक्षा के नाम पर नौनिहालों पर इतना बोझ लादा जा रहा है, जो भविष्य के लिए शुभ संकेत नहीं है। 1नजीर के तौर पर एक निजी स्कूल में कक्षा दो के छात्र शुभम गुप्ता का वजन 22 किलोग्राम है। जबकि उसके स्कूल बस्ते का वजन 10 से 12 किलो है। इसी तरह राजीव जायसवाल नामक बच्च क्लास वन का छात्र है। वजन 15 किलो है लेकिन पीठ पर लटक रहे बस्ते का वजन 8 किलो तक पहुंच गया है। एलकेजी से कक्षा पांच तक पढ़ने वाले अधिकांश बच्चों की स्थिति कमोबेश यही है। 1 इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है बच्चों की मानसिक व शारीरिक स्थित किस हद तक प्रभावित हो सकती है। कहीं ऐसा तो नहीं कि आधुनिक शिक्षा के नाम पर बच्चों पर अकारण भारी भरकम बोझ डाल कर हम उनका भविष्य चौपट कर रहे हैं। चिकित्सकों की मानें तो बोझ ढोने वाले बच्चों का न सिर्फ मानसिक बल्कि शारीरिक विकास रुक सकता है।1इस बाबत जिला आदर्श शिक्षक डा. ओमप्रकाश मिश्र का कहना है कि इस पर रोक लगनी चाहिए। बताया कि एक सर्वेक्षण के अनुसार एक बच्च प्रतिदिन 20 किलो बोझ उठाता है। कहा कि शिक्षा नियमावली के अनुसार बच्चों का आर्थिक, मानसिक व शारीरिक शोषण गैर संवैधानिक प्रक्रिया है।
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