नई दिल्ली। पिछले 67 वर्षों में देश की आबादी साढे़ तीन गुणा से अधिक बढ़ने के साथ साक्षरता दर 16 से बढ़कर 74 प्रतिशत जरूर हुई है लेकिन इस दौरान गांव देहात से लेकर छोटे-बड़े शहरों में सरकारी स्कूलों में पढ़ाई की व्यवस्था चरमरा गई है। लिहाजा आज गांव के लोग जो थोड़ा खर्च उठा सकते हैं, वे सरकारी की बजाए पब्लिक स्कूलों में बच्चों को भेजने को मजबूर हैं। एनसीईआरटी के पूर्व अध्यक्ष जेएस राजपूत ने कहा कि गांव, देहात, अर्द्धशहरी क्षेत्रों में सरकारी स्कूलों की स्थिति ऐसी हो गई है कि वहां शिक्षकों को सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन, पोलियो ड्राप पिलाने, चुनाव कार्यों व जनगणना आदि के कार्यों में लगाया जाता है। बच्चों में पोशाक, साइकिल व मध्याह्न भोजन के वितरण का दायित्व भी शिक्षकों पर ही है। प्राइवेट स्कूलों की फीस इतनी अधिक है कि अब तो मध्यम वर्ग के लिए वे भी जेब से बाहर होते जा रहे हैं, गरीबों की बात को छोड़ दें। उन्होंने कहा कि सिर्फ शिक्षा के अधिकार का कानून बनाना पर्याप्त नहीं है। लोग अब वास्तव में सही माहौल में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की मांग कर रहे हैं। अब सरकार को देर नहीं करनी चाहिए, इस दिशा में पहल करनी चाहिए।
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