संवादसूत्र, बलरामपुर : समावेशी शिक्षण का उद्देश्य शिक्षक को विद्यालय के आसपास के स्थानीय क्षेत्रों में बोली जाने वाली भाषा को समझने का तरीका बताना है। साथ ही उन्हें बोलचाल व समान्य भाषा के अंतर को समाप्त कर बच्चों को सही भाषा का बोध कराना है। जिससे शिक्षक बच्चों को दोनों भाषा के बीच का अंतर व स्थानीय स्तर पर बोली जाने वाली भाषा के अधूरे शब्द व उसके सही उच्चारण की जानकारी भी दे सकें। यह बातें प्रशिक्षक पंकज पांडेय ने गुरुवार को जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में आयोजित तीन दिवसीय के अंतिम दिन कही।उन्होंने कहा कि सभी शिक्षक यह प्रशिक्षण पूरा कर कल से स्कूलों में शुरु हो रहे नए शैक्षिक सत्र में स्कूल पहुंचकर बच्चों को पढ़ाने का कार्य करेंगे। ऐसे में शिक्षकों के लिए इस प्रशिक्षण में बताई गई बातें उपयोगी साबित होंगी। इनकी मदद से शिक्षक को कक्षा में बच्चों को पढ़ाने में भी आसानी होगी। प्रशिक्षक अनीता श्रीवास्तव ने प्रशिक्षण ले रही महिला शिक्षकों को विद्यालय में पढ़ाने के दौरान आने वाली परेशानियां व उनसे निपटने के तरीके बताए। साथ ही शिक्षिकाओं को स्कूल में छात्र व छात्र के बीच के अंतर को समाप्त करने के लिए भी प्रेरित किया। जिससे उन्हें समान शिक्षा मिल सके। बच्चों में उत्पन्न होने वाली लड़का-लड़की के अंतर की भावना को भी समाप्त किया जा सके। इससे पूर्व प्रशिक्षण की शुरुआत में डॉयट प्राचार्य हृदय नरायण त्रिपाठी ने प्रशिक्षु शिक्षकों को पूरी लगन के साथ प्रशिक्षण में शामिल होने व स्कूल में इसका उपयोग करने के निर्देश भी दिए। 1जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान में में शामिल शिक्षिकाएंजागरणसंस्थान द्वारा डॉयट पर प्रशिक्षण लेने के लिए पूरे जिले के विभिन्न ब्लॉकों से कुल 100 प्रशिक्षुओं को बुलाया गया था। केंद्र पर बने प्रशिक्षक कक्ष में महज 50 से 60 प्रशिक्षुओं के ही बैठने के लिए ही जगह थी। ऐसे में कुछ प्रशिक्षु को प्रशिक्षण में शामिल होने के लिए भी परेशान होना पड़ा।
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