बेसिक शिक्षा विभाग में अब तक कई फर्जीवाड़े उजागर हुए, लेकिन यह बिल्कुल अलग है। विभाग के साथ शिक्षक भी शामिल हैं। तीन लाख बच्चों को परीक्षा में फर्जी अंक दे दिए गए। अब इन फर्जी अंकों से विद्यालयों की ग्रेडिंग की जा रही है। परिषदीय विद्यालयों में पिछले शैक्षिक सत्र से शासन ने हर तीन महीने में परीक्षा कराने की शुरुआत की थी। मंशा थी कि परीक्षा से बच्चों की शैक्षिक स्थिति और शिक्षकों के योगदान का पता चल सकेगा। इसके अलावा बच्चों के अंकों के आधार पर विद्यालयों की ग्रेडिंग भी की जानी थी। पिछले सत्र में एक बार भी परीक्षा का आयोजन नहीं हुआ। पहली तिमाही में अधिकारियों ने सभी शिक्षकों के पंचायत चुनाव कार्य में व्यस्त होने की बात कह कर पल्ला झाड़ लिया था। शासन को गुमराह करने के लिए वार्षिक परीक्षा में सभी ने फर्जीवाड़ा करने में कसर नहीं छोड़ी। बिना परीक्षा कराए ही तिमाही परीक्षा के अंक प्रदान कर दिए गए। जबकि बीएसए धर्मेद्र सक्सेना ने माना है कि पिछले साल त्रैमासिक परीक्षा नहीं हो पाई थीं। शिक्षकों ने बच्चों के कक्षा में प्रदर्शन के आधार पर मूल्यांकन कर नंबर दे दिए। चल रहा ग्रेडिंग का काम बच्चों को दिए गए फर्जी अंक के आधार पर अब विद्यालयों के ए बी सी और डी ग्रेड देने का काम चल रहा है। सवाल उठता है कि जब बच्चों के अंक ही सही नहीं है तो विद्यालयों की ग्रेडिंग कैसे सही हो सकती है।
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