उम्र कुछ भी हो बस जज्बा होना चाहिए। तभी असमान में उड़ान भरने का रास्ता बनता है। ऐसा ही 12 वर्ष के बालक ने किया। उसके माता पिता इस दुनिया में नहीं हैं। ताउ व ताई ने उसे पढ़ाने से हाथ खड़े कर दिए। वह हिम्मत नहीं हारा। अकेले ही डीएम के आवास पर पहुंच गया। चार दिन बाद वह डीएम से मिल सका। डीएम के सामने पहुंचते ही बच्चे ने कहा कि‘मैडम मुङो आप जैसा अफसर बनना है। लेकिन लोग मुङो बनने नहीं देना चाहते। मैं अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में पढ़ना चाहता हूं।’ डीएम बच्चे का दर्द सुन भावुक हो गईं। उन्होंने बच्चे का दाखिला कांवेट स्कूल में कराया। अब वह मेहनत से पढ़ाई कर रहा है। शहर के मोहल्ला सैनिक कालोनी में रहने वाले 12 वर्षीय आयुष के माता की मौत उसके जन्म के तीन दिन बाद ही हो गई। मजदूरी करने वाले पिता अमर सिंह की भी छह वर्ष पूर्व दुनिया में नहीं रहे। आयुष के पालन पोषण की जिम्मेदारी उसके ताऊ धनीराम व ताई उर्मिला देवी पर आ गई। धनीराम इसके बाद भी आयुष को शहर के एक कांवेट स्कूल में पढ़ाते रहे। लेकिन इस बार अप्रैल में उन्होंने आयुष को कानवेंट स्कूल में पढ़ाने से हाथ खड़े कर दिए। उन्होंने आयुष से कहा कि वह सरकारी स्कूल में उसका दाखिला करवा देंगे। उसने सरकारी स्कूल में पढ़ने से इनकार कर दिया। धनीराम ने कांवेंट स्कूल में गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित होने से संबंधित समाचार ‘जागरण’ में पढ़ा। यह जानकारी उन्होंने आयुष को दी। आयुष ने कहा कि वह कांवेट स्कूल में ही पढ़ेगा। किसी ने उसे डीएम के पास जाने की सलाह दे दी। इस पर आयुष अकेले ही डीएम आवास पर उनसे मिलने पहुंच गया। वहां उसने कर्मचारियों से डीएम से मिलाने की गुहार लगाई। कर्मचारियों ने अनसुना कर दिया। आयुष मायूस हो गया। लेकिन हार नहीं माना। वह लगातार चार दिन डीएम आवास जाता रहा। चौथे दिन डीएम की नजर उस बालक पर पड़ गई।
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