शासन ने स्थानांतरण नीति भले तय न की हो पर जिले के शिक्षा विभाग में तबादला उद्योग महीनों से फलफूल रहा है। इस खेल का संचालन एक सिंडीकेट कर रहा है, जिसमें विभाग के छोटे बड़े साहब से लेकर जिले के खास हनक रखने वाले माननीय तक हैं। खास बात यह है कि इसमें एक दो चेहरे ऐसे हैं जो शिकार और उनसे डील सभी कुछ सीधे करते हैं। जबकि शिकार को अपने जाल में फंसाने के लिए प्यादों की मदद लेते हैं। प्यादे भी सेटिंग करके उन मामलों को साहब तक पहुंचाते हैं और पत्रवली तैयार होना शुरू हो जाती है। कुछ ही समय बाद वह पत्रवली दो सौ किमी दूर अनुमोदन के लिए पहुंच जाती है।1पांच माह से जनपद में बेसिक शिक्षा विभाग में गुपचुप तरीके से स्थानांतरण प्रक्रिया चल रही है। यह ट्रांसफर का खेल भी तब हो रहा है जबकि बेसिक शिक्षा अधिकारी को इसका अधिकार नहीं दिया गया है। इसके बाद भी किसी भी दशा में ट्रांसफर चाहने वाले शिक्षकों को मनचाही तैनाती मिल रही है। आप सोच रहे होंगे कि कैसे, यह सही है और आए दिन इस खेल का अंजाम देकर साहब और मास्टर दोनों खुश रहने वाली व्यवस्था भी परवान चढ़ रही है। ट्रांसफर सिंडीकेट के तार जिले भर में फैले हैं पर सिंडीकेट के मुख्य या फिर वरिष्ठ सदस्यों के प्यादे विभाग में तैनात शिक्षक एजेंट की भूमिका में होते हैं। एजेंट इस खेल में मुख्य दो धुरियों में से एक है। दूसरा जिले में बेसिक शिक्षा के साहब के ही अति करीबी माने जाने वाले दो छोटे साहब भी सीधे डील करते हैं। डील के साथ ही छोटे साहब स्थानांतरण चाहने वाले शिक्षकों को क्लाइंट के रूप में सारी तैयारी करते हैं फिर उनके प्रार्थना पत्रों को नंबर दो वाले साहब तक पहुंचा कर उनके बीच डील कर आदेश के लिए पत्रवली को आगे भेज देते हैं। तय शर्त पूरी होने पर पत्रवली को पड़ोसी जनपद तक भेज दिया जाता है। अनुमोदन मिलने के बाद शिक्षक को उसकी नवीन विद्यालय की तैनाती का आदेश पहुंचा दिया जाता है। यानी सारे साहब भी खुश और गुरु जी भी खुश। दूसरे वह शिक्षक जिन्हें ने दो वर्ष पहले अंतर्जनपदीय स्थानांतरण नीति के तहत आवेदन किया था वह राह तकते ही रह जाते हैं।
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