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Wednesday, May 11, 2016

पांच साल का होगा एमएड कोर्स ! नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन के लिए गठित समिति ने दिए कई सुझाव

नई दिल्ली। अध्यापक पात्रता परीक्षा राष्ट्रीय स्तर पर कराए जाने की सिफारिशगैर सरकारी स्कूलों के अध्यापकों मिले सामान्य अध्यापकों के समकक्ष वेतनटीईटी परीक्षा प्रमाण पत्र का हर पांच साल पर हो नवीनीकरण मानव संसाधन विकास मंत्रालय द्वारा प्रो. मोहम्मद अख्तर सिद्दीकी के नेतृत्व में गठित समिति ने पांच साल का एमएड डिग्री कोर्स शुरू करने की सिफारिश की है। समिति ने गैर-सरकारी स्कूलों के अध्यापकों और सरकारी संस्थानों के अतिथि अध्यापकों को भी सामान्य अध्यापकों के समकक्ष वेतन देने की बात कही है। समिति ने नेशनल एंट्रेस एग्जाम फॉर टीचर एजुकेशन आयोजित करने की भी सिफारिश की है। समिति ने यह भी कहा है कि टीईटी परीक्षा प्रमाण पत्र का हर पांच साल पर नवीनीकरण हो। नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एसीटीई) के लिए गठित समिति ने दो साल के बीएड के साथ दो साल के एमएड को एक अकादमिक साल में 230 कार्य दिवस के साथ एक साल के एमएड और इसे एक ही अकादमिक वर्ष में पूरा करने की बात कही है। एमएड के लिए 35 इकाई ही रखने की बात कही है। समिति ने कहा है कि 2014 के रेगुलेशन में बदलाव कर एमएड को ओपन और डिस्टेंस लर्निंग (ओडीएल) के माध्यम से भी कराया जाए। हालांकि डिस्टेंस लर्निंग से एमएड दो साल का ही होगा। समिति ने कहा है कि एक विकल्प यह भी है कि की तीन साल के एमएड को पॉपुलर किया जाए जिसमें बीएड भी शामिल हो। समिति के मुताबिक गैर सरकारी स्कूलों में अध्यापकों को कम वेतन मिलता है। सरकारी संस्थानों में भी अतिथि अध्यापकों को सामान्य अध्यापकों के मुकाबले 15 फीसद तनख्वाह मिलती है। समिति ने सुझाव दिया है कि सरकारी तंत्र को एक नई फीस संरचना तैयार करनी चाहिए जिसमें अध्यापकों के वेतन का मामला शामिल होना चाहिए जिससे स्कूल कम फीस होने की वजह से कम वेतन का बहाना न बना सकें। पांच सदस्यीय समिति ने सुझाव दिया है कि 12वीं के बाद पांच साल का एक ऐसा कार्यक्रम शुरू किया जाए जो एमएड की डिग्री दे और यह दूसरी मास्टर डिग्री के बराबर ही हो। यह पूरा कार्यक्रम अध्यापकों के भविष्य पर ही केंद्रित हो। इसमें न ही कोई एक्जिट का विकल्प होगा और न ही दोहरी डिग्री होगी। इसके वर्तमान स्वरूप की कमियों को भी समाप्त किए जाने की बात कही गई है जो अध्यापकों को अन्य रोजगार ढूंढ़ने के बजाय अध्यापन में ही ध्यान केंद्रित करे। समिति ने 2020 तक पूरे देश में पांच साल का कार्यक्रम लागू करने का सुझाव दिया है। समिति का सुझाव है कि अध्यापक पात्रता परीक्षा (टीईटी) को राष्ट्रीय स्तर पर कराया जाए। जो भी र्सटििफकेट दिया जाए उसे हर पांच साल पर नवीनीकरण कराया जाए जो अध्यापकों को अध्यापन में बने रहने के लिए जरूरी हो। समिति ने सुझाव दिया है कि अध्यापक शिक्षण कार्यक्रम में प्रवेश के लिए राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा ‘‘नेशनल एंट्रेस एग्जाम फॉर टीचर एजुकेशन’ आयोजित किया जाए और उन्हें ही प्रवेश दिया जाए जिनके प्रवेश परीक्षा में कम से कम 50 फीसद अंक आए हों। सीटों के आधार पर प्रवेश न हो लेकिन न्यूनतम कट ऑफ पर कोई छूट नहीं दी जाए। इस परीक्षा में शीर्ष के 2000 अभ्यार्थियों को केंद्र सरकार कम से कम पांच हजार रु पए महीने की छात्रवृत्ति दे। यह भी सुनिश्चित किया जाए कि पांच साल का कोर्स पूरा होते ही इन्हें अध्यापन कार्य मिल जाएगा। समिति के मुताबिक 20 हफ्तों की इंटर्नशिप से भी दिक्कत है और सुझाव दिया कि स्कूल इंटर्नशिप को दो-तीन हिस्सों में बांटा जाए जो छह या सात हफ्तों की हो सकती है। साथ ही प्राइवेट स्कूलों में भी इंटरनशिप कराई जाए।समिति का कहना है कि हर राज्य में कम से कम दो टीचर ट्रेनिंग यूनिर्वसटिी बने। हर जिले में कम से कम एक सरकारी टीचर एजुकेशन इंस्टीट्यूट (टीईआई) हो। रिपरेट में उड़ीसा की तारीफ की गई है कि वहां हर जिले में ऐसा है और उड़ीसा ने सेल्फ फाइनेंसिंग टीईआई पर भी बैन लगाया है। समिति ने कहा है कि क्षेत्रीय समिति को समाप्त कर उन्हें टीचर एजुकेशन रिसोर्स सेंटर में तब्दील किया जाए जिसमें सभी सुविधाएं हों। इसी साल दिसम्बर तक एनसीटीई के हेड क्वॉर्टर की स्थायी बिल्डिंग बन जानी चाहिए। स्टाफ को एक ही जगह पर लंबे वक्त तक रखने से बचना चाहिए और एक पारदर्शी ट्रांसफर पॉलिसी बनाई जाए। 


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