बीएसए कार्यालय के आरटीई सेल को मिले करीब 3400 फार्मो में से अब तक 2275 का सत्यापन करने का दावा किया गया है, यही नहीं इनमें से 1973 फार्म ही सही पाये गये हैं, जिन्हें एडमिशन के लिए उपयुक्त पाया गया है। सेल की एक वरिष्ठ महिला अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सभी संकुल प्रभारियों को सूची दे दी गयी है और इस सप्ताह वे अपने-अपने क्षेत्र के स्कूलों से सम्पर्क कर फार्म व अभिभावकों के नाम सौंप देंगे, उम्मीद है कि अभिभावक अगले सप्ताह से एडमिशन के लिए जा सकेंगे। उन्होंने कहा कि श्रीमती विजय लक्ष्मी के अनुपस्थिति से काफी दिक्कतें हो रही हैं। लखनऊ । बेसिक शिक्षा अधिकारी प्रवीण मणि त्रिपाठी का कहना है कि चूंकि स्कूल अभी तक बन्द थे, इसलिए एडमिशन नहीं हो पाये हैं, लेकिन अभिभावक किसी भी स्कूल में फीस व फार्म के नाम पर एक भी पैसा स्कूल को न दें, अभिभावकों को मात्र ड्रेस व किताबें ही खरीदनी है। उन्होंने कहा कि विभाग से प्रत्येक स्कूल को प्रति बच्चे के हिसाब से 450 रुपये फीस के रूप में दी जाती है। श्री त्रिपाठी ने कहा कि वह लोग मात्र उतने ही महीने की फीस स्कूल प्रबन्धन को देते हैं, जितना कि बच्चा पढ़ता है। श्री त्रिपाठी ने बच्चों के एडमिशन से जुड़े सभी ब्यौरे को सार्वजनिक करने पर कोई भी कमेन्ट देने से इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा कि आरटीआई के तहत जो सूचना मांगी जाती है, हम अभी सिर्फ उसी का ही जवाब देते हैं।
सार्वजनिक नहीं किया जा रहा प्रतिष्ठित स्कूलों में दाखिले का ब्योरा
जून खत्म होने को है, नहीं हो पाए अब तक सौ एडमिशन
जून बीतने को है और गरीबों के नौनिहालों को यह ही नहीं पता चल पा रहा है कि उन्हें आखिर किस स्कूल में दाखिला मिलना है। वे बीएसए कार्यालय के चक्कर लगा रहे हैं और वहां दीवार पर लगी सूची देखकर अधिकारियों से गिड़गिड़ाते नजर आ रहे हैं। यह नजारा बीएसए कार्यालय के आरटीई सेल का है, यहां पर रोजाना ही दर्जनों अभिभावक अपने नौनिहाल के मुफ्त एडमिशन के लिए चक्कर लगाते दिख रहे हैं, लेकिन उन्हें जानकारी देने वाला कोई नहीं। दरअसल इसी माह 15 जून को फार्म भरने की अन्तिम तिथि बीतने तक 3400 फार्म भरकर गरीबों ने अपने बच्चों को अच्छे व प्रतिष्ठित स्कूलों से पढ़ाने के लिए आवेदन किया है। बीएसए कार्यालय का ‘‘आरटीई सेल’ इन फार्मो पर कुण्डली मारकर बैठा हुआ है, वह संकुल प्रभारियों से ‘‘सत्यापन’ कराने के नाम पर अब तक दो महीने गुजार चुका है, लेकिन सत्यापन का काम पूरा होने का नाम ही नहीं ले रहा है। कहने के लिए कार्यालय के गेट की दीवार पर एक सूची भी चिपकायी गयी है, जिसमें करीब डेढ़ हजार बच्चों के नाम की सूची बतायी जा रही है, लेकिन इसके बाद भी अभिभावकों की उधेड़बुन शान्त होने का नाम नहीं ले रही है। एक तरफ जहां गरीबों को उनके ‘‘स्टैण्र्डड’ का ही स्कूल पकड़ाया जा रहा है तो वहीं नामी व प्रतिष्ठित स्कूल जुगाड़ के अभिभावकों के लिए सुरक्षित रखे गये हैं। अभिभावक तो यहां तक आरोप लगाते हैं कि उनकी वरीयता सूची को विभाग के बाबू दरकिनार कर अपने मन से स्कूल भरवा रहे हैं और आनन-फानन में उन्हें ही आवंटित किया जा रहा है। जो नहीं मान रहे हैं, उन्हें ऐसे स्कूल पकड़ाये जा रहे हैं, जहां सीटें भर चुकी हैं। आरटीई सेल की प्रभारी विजय लक्ष्मी पिछले एक सप्ताह से चोट लगने की वजह से छुट्टी पर हैं, उनका काम देख रहे दो बाबू में से एक अन्य भी तबियत का बहाना बनाकर गायब हैं। जो बचे हैं वह अधिकारियों के न होने की बात कहकर तीन दिन बाद आने को कहकर टरका रहे हैं। गरीब बच्चों के उत्थान के क्षेत्र में कार्य कर रही औरा फाऊण्डेशन की सुश्री रिकी धांजल कहती हैं कि राइट टू एजूकेशन का मतलब यह नहीं कि गरीब बच्चे गरीबों वाले स्कूल में ही पढ़ें, लेकिन विभागीय अधिकारी उन्हें जानबूझकर ऐसे ही स्कूलों में एडमिशन लेने के लिए मजबूर कर रहे हैं। वे कहती हैं कि पिछले वर्ष कितने बच्चों को किन-किन प्रतिष्ठित स्कूलों में एडमिशन दिलाया गया, इसका ब्यौरा सार्वजनिक किया जाना चाहिए, जिससे पता चल सके कि इस अधिनियम का फायदा आखिर कितना और कहां तक हुआ है।
द लखनऊ।गिरीश तिवारी
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