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Thursday, June 2, 2016

बस्ती : गर्मी की छुट्टी में भी भोजन देने का था निर्देश, बच्चों के न आने से बढ़ी समस्या , परेशान हो रहे प्रधानाध्यापक, बच्चों का इंतजार कर लौट जा रहे शिक्षक


शासन के निर्देश पर तत्काल अमल करना विभागीय अधिकारियों व कर्मचारियों की जिम्मेदारी होती है। भले की उनका मन हो या न हो। लेकिन जब बात बच्चों की हो तो कोई क्या करता सकता है। ऐसे ही प्रशासन के एक फरमान को अमलीजामा पहनाने में बच्चों की मर्जी भारी पड़ रही है। बेसिक शिक्षा विभाग द्वारा सूखाग्रस्त जिलों के परिषदीय विद्यालयों व मदरसों में पंजीकृत बच्चों को गर्मी के अवकाश में भी मध्यान्ह भोजन देने का निर्देश जारी हुआ। जिसके बाद तत्काल जिला स्तरीय बैठक हुई और सभी जिम्मेदारों को तत्काल प्रभाव से व्यवस्था लागू करने को कहा गया। पूर्व की भांति बच्चों को हर दिन विद्यालय पर भोजन दिया जाना था। जांच के लिए टास्कफोर्स भी बना दी गई। जिससे विद्यालय स्तर पर कोई लापरवाही न होने पाए। विद्यालय प्रबंधन ने भी आनन-फानन में पूरी व्यवस्था मुकम्मल कर अभिभावकों को इसके बारे में जानकारी दी। अब स्थिति यह है कि अध्यापक और रसोइयां तो आ रहे है, लेकिन बच्चे गायब है। चुंनिदा को छोड़ दिया जाय तो अधिकांश स्कूलों पर बच्चे नदारद हैं।बच्चों के इंतजार में कट रहा समय: गौर ब्लाक के प्राथमिक विद्यालय भारीनाथ पर मंगलवार की सुबह नौ बजकर बीस मिनट पर जागरण टीम पहुंची तो प्रधानाध्यापक मनोज मिश्र व रसोइयां मौजूद मिली। रसोइयां चावल साफ कर रही थी। प्रधानाध्यापक ने बताया कि पूरी व्यवस्था है, लेकिन बच्चों के न आने से समस्या हो रही है। जबकि अभिभावकों के इसके बारे में सूचना उपलब्ध करा दी गई है। ऐसी ही स्थिति प्रावि हथिनाश, प्रावि हरदी, पूर्व माध्यमिक विद्यालय भरवलिया सहित अधिकांश की है। जहां बच्चों का इंतजार किया जा रहा है।

जिला बेसिक शिक्षाधिकारी डा. संतोष कुमार सिंह ने कहा कि बच्चों को विद्यालय तक लाने के लिए उनके अभिभावकों व ग्राम प्रधान से सहयोग लेने का प्रयास किया जा रहा है। कोशिश रहेगी की अधिक से अधिक बच्चों को इसका लाभ मिले। सामूहिक प्रयास पर ही अधिकांश बच्चों को विद्यालय तक लाया जा सकता है।1दूर के शिक्षकों के लिए मुसीबत बना आदेश: चूंकि इस शासनादेश में बच्चों को भोजन पूर्व के जिम्मेदारों द्वारा उपलब्ध कराए जाने का निर्देश है। ऐसे में जिन अध्यापकों का घर सीमित दूरी पर है, उनके लिए तो आसान है। लेकिन गैर जनपद से आकर नौकरी करने वालों के लिए चुनौती बन गई है। कई अध्यापकों ने बताया कि अधिकांश बच्चे या तो रिश्तेदारी में गए हैं अथवा भोजन के लिए विद्यालय तक आना नही चाहते हैं।

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