ग्रीष्मावकाश समाप्त होने के बाद अभावों के बीच माध्यमिक व परिषदीय विद्यालयों के छात्रों ने पढ़ाई शुरू किया। शनिवार को वह भींगते हुए विद्यालय पहुंचे। विभाग की लापरवाही के चलते न तो मुफ्त किताबों का वितरण हुआ न भवनों की व्यवस्था हो सकी। शिक्षकों की कमी से बड़ी संख्या में विद्यालय जूझ रहे हैं। इस व्यवस्था में सरकार कृष्ण-सुदामा के बीच की खाईं को खत्म करने का ताना-बाना बुन रही है। खराब मौसम के कारण पहले दिन उपस्थिति बहुत कम रही। छह से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य और गुणवत्तायुक्त शिक्षा देने के लिए विधेयक संसद में पारित हुए कई साल बीत गए लेकिन व्यवस्था आज तक पटरी पर नहीं लौटी। जबकि परिषदीय व माध्यमिक विद्यालयों की दशा सुधारने के लिए विभिन्न योजनाओं के माध्यम से करोड़ों रुपये पानी की तरह बहाया जा रहा है। कान्वेंट स्कूलों की दौड़ में शामिल करने के लिए माध्यमिक व परिषदीय स्कूलों में बदलाव करते हुए अप्रैल से शिक्षण सत्र का प्रयोग शुरू किया गया है। इसके लिए पहले परीक्षा कराकर रिजल्ट घोषित कर दिया गया। विभाग ने इसके लिए खुद पीठ भी थपथपा ली लेकिन शिक्षण व्यवस्था पटरी पर नहीं लौटी। 2416 प्राथमिक, 878 जूनियर हाईस्कूल, नौ मदरसा और 154 माध्यमिक विद्यालयों में सर्व शिक्षा अभियान के तहत मुफ्त किताबों का वितरण नहीं हो पाया। दूसरी तरफ छात्रों की संख्या के हिसाब से शिक्षकों की भी कमी है। विशिष्ट बीटीसी की चयन प्रक्रिया जहां पूर्ण नहीं हो पाई वहीं जूनियर हाईस्कूलों में गणित, विज्ञान के शिक्षकों की नियुक्ति अधर में है। माध्यमिक विद्यालयों में भी वर्ष 2011 से नियुक्ति प्रक्रिया आयोग में खामी के चलते लटकी है। नगर के गरीब, असहाय परिवार के बच्चों को शिक्षित करने के लिए 35 प्राथमिक, 11 जूनियर हाईस्कूल हैं। निजी भवन न होने के कारण 13 किराए के जर्जर भवन में चल रहे हैं। पांच प्राथमिक व दो जूनियर हाईस्कूल के बच्चे आसमान तले शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। नगर लगभग सभी विद्यालयों में शिक्षकों की कमी है।
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