शिक्षा विभाग में तबादलों की गुत्थी लगातार उलझती जा रही है। एक ही जगह पर वर्षो से जमे जिन लिपिकों के तबादले हुए हैं उन्हें रुकवाने को विभागीय अफसर जुटे हैं। अफसर ही तर्क दे रहे हैं कि इस स्थानांतरण से काम प्रभावित होगा। यही नहीं जिस अफसर ने तबादले किए हैं, उसके पास आदेश का अनुपालन न होने पर कार्रवाई करने का अधिकार नहीं है, जिन्हें अनुपालन कराने का निर्देश जारी करना चाहिए वही बचाव कर रहे हैं। शासन की तबादला नीति के अनुरूप लिपिकों के भी तबादले हुए हैं। राजकीय कालेजों एवं जिला विद्यालय निरीक्षक कार्यालयों में वर्षो से जमे 160 लिपिकों का स्थानांतरण दूसरे मंडलों एवं उन जिलों में किया गया, जहां वह पहले तैनात नहीं थे। आदेश जारी हुए कई माह बीत चुके हैं, लेकिन अब तक अधिकांश ने नई तैनाती स्थल की ओर से रुख नहीं किया है, बल्कि वह पहले तबादला निरस्त कराने या फिर उसमें संशोधन कराने को प्रयासरत थे। इसके लिए शिक्षा निदेशालय पर धरना-प्रदर्शन किया। लिपिकों ने तर्क दिया कि संगठन के पदाधिकारियों का भी नियम विरुद्ध फेरबदल हुआ है। इस पर पदाधिकारियों के तबादला आदेश संशोधित करने पर राय बनी, लेकिन सभी तबादले रद करने को महकमा तैयार नहीं है। शिक्षा निदेशालय में दबाव न बनने पर लिपिकों ने शासन स्तर पर पैरवी शुरू कर दी। माध्यमिक शिक्षा के बड़े अफसर उनकी पैरवी में खड़े हो गए हैं, अफसरों का तर्क है कि उनके हटने से कामकाज प्रभावित होगा, लेकिन वह इस बात का जवाब नहीं दे रहे हैं कि जब यही लिपिक सेवानिवृत्त होते हैं तो कामकाज कैसे चलता है। बड़े अफसर तबादले निरस्त का दबाव बना रहे हैं। आदेश का अनुपालन न होने की मुख्य वजह ‘पॉवर’ है। शिक्षा निदेशालय के जिस अफसर ने यह तबादले किए हैं वह आदेश न मानने वालों पर कार्रवाई नहीं कर सकता है, जिन अफसरों को कार्रवाई करनी चाहिए वह लिपिकों के पक्ष में खड़े हैं। शुरुआत में कुछ लिपिकों ने तबादला आदेश माना, लेकिन अफसरों के बयान के बाद प्रक्रिया ठप हो गई है। खास बात यह है कि तबादलों में कोई गड़बड़ी नहीं है, सभी फेरबदल नियम सम्मत हुए हैं। अब तक किसी लिपिक का तबादला न तो निरस्त हुआ है और न ही उसमें संशोधन किया गया है।
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