परिषदीय विद्यालय के शिक्षक का दर्द व्हाट्सएप पर हिट हो रहा है। व्यवस्था के नाम पर लिखे गए अनजान शिक्षक के पत्र को शिक्षक और व्हाटसएप प्रेमी जमकर हिट कर रहे हैं। इसमें खुद को पाक साफ बताते हुए शिक्षक ने कहा है कि सरकार ने पढ़ाने के सिवाए सारे काम दे रखे हैं। ऐसे में हमें दोष देने वाले अफसर बताएं कि बच्चों को पढ़ाएं तो आखिर कब। हमारे पास तो घर की सब्जी खरीदने तक के लिए वक्त नहीं है। सवाल उठाते हुए परिषदीय शिक्षक ने कहा है कि यही हाल रहा तो भविष्य अशिक्षित रह जाएगा तब भी व्यवस्था हमें ही दोषी ठहराएगी।
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व्हाटसएप के एक दो नहीं लगभग चालीस ग्रुप पर चल रहे परिषदीय विद्यालय के शिक्षक का यह पत्र प्रिय व्यवस्थाएं करके संबोधित है। इसमें शिक्षक ने कहा है कि हम तो ठहरे अध्यापक हमें खुलकर लिखने का ज्यादा अधिकार नहीं मिला है फिर भी बात जब हद से बढ़ जाती है और दिमाग पर असर करने लगती है तो लिखना आवश्यक हो जाता है। सबसे पहले मीडिया से नाराजगी जताते हुए शिक्षक ने कहा है कि पढ़ाने के लिए नियुक्ति देने के बाद जनगणना, चुनाव, बीएलओ, पल्स पोलियो, मतदाता पुनरीक्षण, वृक्षारोपण, स्वास्थ्य परीक्षण, मध्यान्ह भोजन निर्माण और वितरण, सांख्यिकी गणना आदि के लिए क्या हम विभिन्न विभागों से आग्रह करने गए थे या इन विभागों के काम निपटाने का आदेश हमारी सेवा नियमावली का हिस्सा है। जरा आप यह भी बता दें कि जिस निजी स्कूल में एक बच्चे का महीने भर जितना जेब खर्च होता है, उतने खर्च में आप वर्ष भर हमसे एक स्कूल क्यों चलवाते हैं।
स्कूल की साफ सफाई की फोटो को बड़ा करके छापने और प्रधानाध्यापक को निलंबित करने से पहले काश आप यह भी जान लेते कि पिछले कितने दिनों से विद्यालय में सफाई कर्मी नहीं आया है और आपने कितने सफाई कर्मियों को निलंबित किया। हमारे टॉयलेट में झांकने से पहले और उन्हें गंदा होने का प्रश्न उछालने से पहले यह भी जान लेते कि गांव का स्वीपर इन्हें साफ नहीं करता। पत्र में परिषदीय शिक्षक ने कहा है कि हम भी चाहते हैं कि हमें पढ़ाने का अवसर मिले पर आप हमें पढ़ाने कब दे रहे हैं। रात में सोते समय बच्चों के लिए कार्ययोजना बनाने की बजाय दिमाग में सब्जी मंडी से लाने का तनाव लेकर सोना पढ़ता है। सब्जी मंडी में हमारे घुसते ही 10 रुपये की लौकी 15 की हो जाती है और दुकानदार कटाक्ष करता है कि मास्टर बहुत कमाई है तुम्हारी।
संडे की शाम को फल मंडी से एक बोरी केले लादकर लाने में पसीने छुट जाते है और डर लगता है कि अगर मोटर साइकिल फिसल गई तो राम नाम सत्य ना हो जाए। बुधबार की रात दूध के तनाव में निकल जाती है और रोज मिलावटी दूध की शिकायत की खबरें देखकर बच्चों को दूध पिलाते वक्त कलेजा मुँह को आ जाता है। डर लगता है कि अगर एक भी बच्चा बीमार हुआ तो हमारे खुद के बच्चे भूखों मर जाएंगे। जरा आप बताइए कि आपने दूध की शुद्धता नापने का कोई यंत्र कभी हमें दिया है। मिड डे मील खाने से बीमार हुए बच्चों की खबर सुन कर हम मानसिक रूप से बीमार हो गए हैं। जब तक मध्यान्ह भोजन के बाद बच्चे सकुशल घर नहीं चले जाते तब तक हम डरे सहमे से रहते हैं।
क्योंकि बाजार की सब्जी में कौन सा इंजेक्शन लगाया गया है इसकी रोज फोरेंसिक जांच कर पाना हमारे बस में नहीं है। अक्सर हमारी गाड़ी पर पीछे सिलेंडर बंधा पाया जाता है। कभी कभी आटे की बोरी और सब्जी का थैला। आप हमें वोट बनाने को कहते हो और गांव में प्रधानी चुनाव के संभावित राजनैतिक दावेदार हमारे दुश्मन बन जाते हैं। रोज हम गलत वोट ना बढ़ाने के कारण गरियाये जाते हैं। पर आपको को तो काम चाहिए वो भी समय पर और बिना किसी त्रुटि के। महीनों वोट बनाने के चक्कर में कभी कभी हम अपने प्रिय शिष्यों के नाम तक भूल जाते हैं और कभी कभी तो हमें यह भी याद नहीं रह पाता कि हमने अपने बच्चों को इस साल कितने अध्याय पढ़ाये हैं। कभी रंगाई पुताई समय से कराने के चक्कर में पुताई कर्मियों की भी जी हुजूरी करनी पड़ती है। सात हजार में इतना बड़ा विद्यालय पुतवाने के बाद विद्यालय की बॉउंड्री पर बैठे लड़के पूछते हैं मास्टर कितने बच गए तो कहना पड़ता है कि नौकरी बच गई बस।
बरसात की घास छोलने से लेकर भवन की झाड़ू तक की जबाबदेही हमारी ही है, अगर हमारे बच्चे हमारा साथ ना दें तो हमारी जिंदगी मास्टर की बजाय सफाई कर्मी बनकर ही गुजर जाए। इसी बीच परीक्षा आ जाती है साहब कहते हैं कि बिना पैसे के करा लो, हमें परीक्षा के लिए कक्ष निरीक्षक तक नहीं मिलते हैं हमारे बच्चे एक रूपये की कॉपी तक नहीं खरी पाते है, पर साहब कहते हैं कि बच्चे फेल नहीं होने चाहिए। अब जो बच्चा मामा के घर चला गया है उसको कैसे पास कर दें हमारा दिल तो गवारा नहीं करता है पर साहब कहते हैं कि हमें शतप्रतिशत रिजल्ट चाहिए। फिलहाल, परिषदीय शिक्षक का यह दर्द व्हाटसएप पर हिट हो रहा है और इस पर विभिनन तरह की टिप्पणी हो रही है जो सरकार और प्राथमिक शिक्षा की पोल खोल रहे हैं।
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