बेसिक शिक्षा विभाग में बाबूगिरी हावी है। कई बाबू वर्षों से एक ही पटल पर काबिज हैं। बड़े बड़े अफसरों की इन्हें हटाने की हिम्मत नहीं होती। लिहाजा, कार्यालय में भ्रष्टाचार में जड़ें भी इतनी मजबूत होती जा रही हैं और हर छोटे से छोटे काम के लिए शिक्षकों से मोटी रकम वसूली जाती है। रुपये न देने पर शिक्षकों को दर दर की ठोकरों के सिवाए कुछ नहीं मिलता।जिला बेसिक शिक्षाधिकारी कार्यालय भ्रष्टाचार के दलदल में फंसा है। चाहें तबादले की बात हो या फिर निलंबन बहाली का मामला हो। सहायता प्राप्त स्कूलों में शिक्षकों की नियुक्ति से लेकर स्कूलों के निरीक्षण तक में मोटी रकम का खेल चलता है। यह खेल उन बाबुओं के सहारे होता है, जो पंद्रह पंद्रह वर्षों से एक ही पटल पर काबिज हैं। यही नहीं नगर शिक्षाधिकारी के कार्यालय में तो एक ऐसा शिक्षक काम कर रहा है, जो वर्ष 2013 में सेवानिवृत्त हो चुका है। सहायता प्राप्त स्कूलों के कार्य वाले पटल पर भी बाबू पिछले पंद्रह वर्षों से तैनात है। इसी बाबू के जिम्मे नगर क्षेत्र का कार्य भी है। इसके अलावा स्कूलों के दो दर्जन से अधिक शिक्षक भी बीएसए कार्यालय से तैनात हैं, जो दूसरे कामकाज देखते हैं। ऐसा नहीं है कि इन बाबुओं को कभी हटाने की कोशिश न हुई हो, लेकिन सियासी रसूख और काली कमाई ही है जो बड़े बड़े अधिकारी भी इन बाबुओं का कुछ नहीं बिगाड़ पाते। यही वजह है जो बीएसए दफ्तर में भ्रष्टाचार का मकड़जाल फैलता ही जा रहा है। इस बावत जिला बेसिक शिक्षाधिकारी श्याम किशोर तिवारी का कहना है कि हमारे कार्यालय में ऐसा कोई बाबू नहीं है, जो तीन वर्ष से अधिक समय से तैनात हो। लेखाधिकारी कार्यालय में यदि ऐसा कुछ है तो इस संबंध में हम कुछ नहीं कह सकते। यदि कोई सेवानिवृत्त शिक्षक काम कर रहा है तो इसके बारे में पता लगाया जाएगा। जो शिक्षक अटैच हैं, उन्हें डायट में स्टाफ न होने की वजह से अटैच किया गया है।
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