यह विद्यालय आईना है उन लोगों के लिए जो परिषदीय विद्यालय को कोसते नहीं थकते और नसीहत है उन शिक्षकों के लिए जिनकी वजह से लोगों में ऐसी धारणा बनी है। यूं ही नहीं मुहम्मदाबाद के गौसपुर कन्या पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक दशरथ सिंह यादव पर नाज है महकमे को। बेहतर पढ़ाई के साथ ही साफ-सफाई व सजावट भी ऐसी कि विद्यालय परिसर गेस्ट हाउस सरीखा नजर आता है। पढ़ाई संग हर मामले में यह कान्वेंट स्कूलों को भी मात दे रहा है।विद्यालय में छात्रओं का कुल पंजीकरण 155 है। इन्हें शिक्षा देने के लिए प्रधानाध्यापक के अलावा चार महिला शिक्षक व दो अनुदेशक नियुक्त हैं। विद्यालय में अनुशासन व साफ सफाई का आलम यह है कि कक्षा चलने के दौरान परिसर पूरी तरह से शांत रहता है वहीं छात्रएं व शिक्षक अपने चप्पल, जूता को बरामदे से बाहर सीढ़ी पर ही निकाल कर कक्षा में प्रवेश करते हैं। बालिकाओं को कक्षाओं में बैठने के लिए फर्श पर टाट पट्टी की जगह अच्छे किस्म की मैट बिछाई गई है। बच्चे हमेशा अनुशासन में रहते हैं। खाना खाने के लिए छात्रओं को अपने घर से बर्तन नहीं लाना पड़ता है। उनके लिए बर्तन विद्यालय में ही उपलब्ध है। बरामदे में गमले में सजाये गये फूल व अन्य पौधे विद्यालय की खूबसूरती में चार चांद लगा रहे हैं। विद्यालय में शौचालय तीन यूनिट में बनवाया गया है। पहला छात्रओं के लिए, दूसरा महिला शिक्षक व तीसरा पुरुष शिक्षकों के लिए।विद्यालय की सुंदरता में करते हैं निजी खर्च : विद्यालय को सजाने व संवारने में पूरी तरह से समर्पित प्रधानाध्यापक दशरथ सिंह यादव ने बताया कि उनकी नियुक्ति इस विद्यालय में छह मार्च 2010 को हुआ। उन्हें अतिरिक्त कक्ष के लिए जो राशि मिली, उसमें अपनी तरफ से व्यवस्था कर कक्षों के अलावा उसके सामने बरामदा भी तैयार कराया। दो पुराने कक्षों का फर्श निजी व्यवस्था से किया। किचन निर्माण के दौरान परिसर के अंदर बने चबूतरे का भी सुंदरीकरण कराया। बताया कि अपने निजी धन से विद्यालय में गमला लगवाया हूं। छात्रओं को परिचय पत्र भी वितरित किया गया है। बताया कि सुबह विद्यालय पहुंचने पर प्रार्थना आदि हो जाने के बाद छात्रओं की उपस्थिति की जानकारी लेता हूं।बीमार छात्रओं के पहुंच जाते हैं घर : अगर कोई छात्र बीमार हो जाता है तो प्रधानाध्यापक उनके घर पहुंच जाते हैं। अनुपस्थित छात्रओं के बारे पूछते रहते हैं। कई दिनों तक विद्यालय नहीं आने पर उनके घर भी कारण जानने के लिए पहुंच जाते हैं। शुरू से ही उनके मन में ललक रही है कि जिस उद्देश्य से इस प्रोफेशन में आए हैं वह पूरा हो। शिक्षक का सम्मान शिक्षा देने से ही है। अगर सभी शिक्षक मन में ठान ले और विभाग से अपेक्षित सहयोग मिले तो फिर परिषदीय विद्यालयों में शिक्षा के पुराने दिन लौट सकते हैं।
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