जागरण संवाददाता, अलीगढ़ : नाजुक कंधों पर बस्तों का बोझ बचपन पर भारी पड़ रहा है। केंद्र, राज्य सरकार, न्यायालय, सीबीएसई ने कई बार बस्तों का वजन घटाने के आदेश-निर्देश जारी किए, मगर स्कूल संचालकों की मनमानी के आगे सभी बौने पड़ गए। कान्वेंट स्कूलों की मजबूत लॉबी के चलते अधिकारी भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं। सपने में भी होमवर्क:डब्ल्यूएचओ के5 सर्वे में भी पाया गया है कि बस्ते का यह बोझ अब बच्चे की शिक्षा, समझ व स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डाल रहा है। बस्तों के भारी वजन व उनके होमवर्क के चलते बच्चों की आंखें कमजोर हो रही हैं। सिर में दर्द रहने लगा है और उंगलियां टेढ़ी होनी शुरू हो गई हैं। चिकित्सक भी इसकी पुष्टि करते हैं। हकीकत भी यही है कि बच्चे अब सपने में परियों को नहीं देखते, बल्कि होमवर्क को लेकर बुदबुदाते हैं। 1कागजी कवायदें व कानून 1बस्तों का बोझ कम करने का मुद्दा कई बार उठा, मगर परिणाम कुछ नहीं निकला। 1980 में आरके नारायण ने राज्यसभा में बस्तों का बोझ कम करने के लिए आवाज उठाई। अफसोस, 36 साल बाद भी बच्चे उसी बोझ तले दबे हैं। 1988 में सांसद चंदूलाल चंद्राकर समिति व 1992 में प्रो. यशपाल समिति, 1990 में वीपी सिंह सरकार ने आचार्य राममूर्ति की अध्यक्षता में समिति गठित की, मगर बच्चों का बस्ता और भारी होता रहा। 1992 में मानव संस्थान मंत्री अजरुन सिंह ने चंद्राकर समिति की सिफारिशों को लागू करने की भरोसा दिया, मगर हुआ कुछ नहीं। खुद सीबीएसई की ओर से बस्ते का बोझ कम करने के लिए गाइड लाइन जारी की गई, मगर स्कूल संचालकों ने रद्दी की टोकरी में डाल दिया। मानव संसाधन मंत्रलय के नए नियमों में कक्षा दो तक बस्ता न होने की बात है, मगर अमल कितना हो रहा, सभी जानते हैं। 110 साल पहले बना एक्ट 1डेढ़ साल पहले केंद्रीय मानव संसाधन मंत्री स्मृति ईरानी ने उत्तर प्रदेश समेत सभी राज्यों को पत्र लिखकर बस्तों का वजन कम करने के निर्देश दिए, मगर उनके निर्देश भी आए-गए हो गए। उत्तर प्रदेश सरकार ने चिल्ड्रन स्कूल बैग एक्ट-2006 के तहत वजन कम करने की कवायद का हवाला दिया। हकीकत यह है कि प्रदेश सरकार एक्ट बनाने के 10 साल बाद भी इस दिशा में कुछ नहीं कर पाई है। इस एक्ट के तहत छात्र के बैग का वजन बच्चे के भार का 10 फीसद होना चाहिए। एक्ट में प्रावधान है कि स्कूल छात्रों को कप बोर्ड व लॉकर की सुविधा दें, जिससे वे जरूरी किताबें ही घर ले जाएं और बाकी लॉकर में ही रखी रहें। अफसोस, धरातल पर कुछ नहीं है। लॉबी से हारे अफसर:बस्तों को बोझ कम करने के लिए भले ही कानून हो, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश और तमाम गाइड लाइन हों। हकीकत ये है कि अधिकारी खुद स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करने में खुद को असहाय पा रहे हैं। यह लॉबी बेहद मजबूत हैं। जब भी अधिकारियों की तरफ से इस तरह की कोई पहल हुई, अचानक ऊपर से फरमान आ गया और वे चुप बैठ गए।यह सही बात है कि यह लॉबी काफी ताकतवर है, फिर भी हम मान्यता समाप्त करने के लिए नोटिस भेजते हैं। पुन: समस्या सामने आई हैं। पांच सितंबर के बाद कार्रवाई शुरू करेंगे। - धीरेंद्र कुमार यादव, बीएसए।
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