परिषदीय विद्यालयों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार आना तथा अभिभावकों का भरोसा जीतना विभाग के लिए अभी मुश्किल ही नजर आता है। वजह विभाग की ओर से पढ़ाई को लेकर संसाधन मुहैया कराए जाने में समयबद्धता का ध्यान नहीं दिया जा रहा है। लिहाजा नए शिक्षण सत्र को शुरू हुए पांच माह का वक्त बीत चुका है, लेकिन छात्रों को नई पोशाक तो दूर अभी तक किताबें ही नसीब नहीं हो सकी हैं। लिहाजा गत वर्ष के छात्रों से ही मांग फटी-पुरानी पुस्तकों के सहारे ही आधे शिक्षणसत्र की पढ़ाई पूरी हो चुकी है। हालात यह हैं कि अनुशासन के नाम पर शिक्षकों पर ही शिकंजा कसा जा रहा है। जबकि पढ़ाई को लेकर बच्चों और अभिभावकों को रिझाने के बाद यहां शिक्षण के मानदंड ध्वस्त हैं।सवाल उठता है कि आखिर परिषदीय विद्यालयों में छात्रों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने का सिलसिला कब तक चलता रहेगा। प्रतिवर्ष पुस्तकों की आपूर्ति से लेकर वितरण तक की दशा ऐसी ही रहती है। ऐसे में आधे शिक्षणसत्र के बीतने के बाद पुस्तकें नहीं उपलब्ध हो सक हैं। उधर छमाही परीक्षा का भी आयोजन होने का समय नजदीक आने लगा है।
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