सरकारी विद्यालयों में प्राथमिक शिक्षा की बात होते ही मन में जो तस्वीर कौंधती है, यह तस्वीर उससे जुदा है। यहां शिक्षा के नाम पर मजाक नहीं हुआ। गुरुजी सात साल बच्चों को शिक्षा देने की साधना करते रहे और जब विदाई की बेला आई तो सबको रुला गए। यह नाता स्वार्थ का नहीं, कुछ देने के संकल्प और अपनेपन की कलक का था। ऐसे रिश्ते बनाने वाले लोग भले ही कम रह गए हों पर बन जाएं तो भुलाए नहीं भूलते। जिले के गिलौला ब्लॉक के जूनियर हाईस्कूल हरवंशपुर में सहायक अध्यापक रहे हरीश कुमार के विदाई समारोह में उपस्थित छात्र, अभिभावक, सहयोगी शिक्षक व उपस्थित अन्य लोग भी भावुक थे। सात साल बाद हरीश कुमार का तबादला उनके गृह जिले बस्ती के लिए हुआ था। ऐसे में गुरुजी भी भावुक हुए बिना न रह सके। उनकी आंखों से भी आंसू बह निकले। सातवीं कक्षा का छात्र पंकज तो हरीश को पकड़कर रोने लगा, बोला ‘गुरुजी आप न जाएं, हम कभी शरारत नहीं करेंगे’। कक्षा छह की छात्र ने उन्हें रोकते हुए कहा, सर आप न जाएं, मैं रोज स्कूल आऊंगी और होमवर्क भी पूरा करूंगी। सचमुच शिक्षा के बाजारीकरण के दौर में यह गुरु-शिष्य परंपरा का अनूठा दृश्य था।बस्ती जिले के कप्तानगंज ब्लॉक के गड़हा गौतम गांव निवासी हरीश ने इसी गांव के प्राइमरी स्कूल में 13 फरवरी 2009 को बतौर सहायक अध्यापक शिक्षण कार्य शुरू किया था। उन्होंने यहीं प्राइमरी स्कूल से पदोन्नति पाकर आठ अगस्त 2011 को उच्च प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन कार्य संभाला। हाल ही में गृह जिले के लिए स्थानांतरित हुए हरीश ने ‘जागरण’ से कहा कि वे अपने अध्यापक पिता सत्यराम की सीख ‘अपना शिक्षण कार्य सही ढंग से करोगे तो हर जगह अपनापन मिलेगा’ को गांठ बांधकर यहां आए थे। उनके बाबा स्वर्गीय जगलाल प्रसाद भी कप्तानगंज में अध्यापक थे। उनकी बहन शारदा भी अध्यापक हैं। परिवार की विरासत से उन्हें बच्चों से लगाव रखने की प्रेरणा मिली। यहां बच्चे अपने बेटे-बेटी जैसे लगे। उन्होंने शिक्षण कार्य के दौरान प्रेम से छात्रों को सिखाने की कोशिश की। इसी विद्यालय में कक्षा छह के छात्र पंकज मिश्र कहता है कि मास्टर साहब न केवल पढ़ाने, बल्कि उसके खाने-पीने का भी ध्यान रखते थे। सफाई के लिए टोकते रहते थे और अच्छे ढंग से पढ़ाते थे, कभी मारते नहीं थे। कक्षा छह के छात्र गंगेश कुमार, दीपक कुमार व छात्र क्रांती देवी ने बताया कि गुरुजी स्कूल में चोट, उल्टी-दस्त, बुखार आदि की दवा भी रखते थे और किसी की तबीयत खराब होने पर बेचैन हो उठते थे।
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