परिषदीय स्कूलों के निरीक्षण में अक्सर पंजीकृत बच्चों में आधे से ज्यादा गायब ही मिलते हैं, जिसपर अधिकारी कार्रवाई भी करते हैं पर दूसरी तरफ विभागीय आंकड़े बताते हैं कि 98 फीसद बच्चे सोमवार को दिए जाने वाले फल खा रहे हैं। आंकड़ों के मुताबिक बच्चों की उपस्थिति भी सही है और जो बच्चे आते हैं उनमें से मात्र दो फीसद ही फल नहीं खाते। वैसे समय समय पर हकीकत आंकड़ों की पोल खोलती रहती है। परिषदीय विद्यालयों में समाजवादी पौष्टिक आहार योजना के तहत हर सोमवार को बच्चों को मौसमी फल खिलाया जाता है। प्रति बच्चा चार रुपये खर्च होते हैं। शुरुआत में धन नहीं था लेकिन अब विद्यालयों में खाने के लिए भले ही न पहुंची हो पर फलों के लिए भेजी जा चुकी है। वैसे योजना पर निगरानी का भी इंतजाम किया गया था पर सब कुछ कागजों तक सीमित होकर रह गया। दैनिक अनुश्रवण प्रणाली में रोज आने वाली कंप्यूटरीकृतकाल में जितने बच्चों के खाना खाने की बात बताई जाती है तो मान लिया जाता है कि सोमवार को उतने बच्चों ने फल भी खाए। विद्यालयों में शिक्षक शिक्षिकाओं की भी मजबूरी है, उनका कहना है गांवों में फल नहीं मिलते। जब तक केला या आम का सीजन रहा बच्चों ने फल खाए लेकिन अब फल मंहगे हुए हैं लेकिन कागज पूरी तरह व्यवस्थित हैं। सितंबर तक तैयार किए गए आंकड़े देंखे तो जिले के परिषदीय विद्यालयों में 2853 प्राथमिक में से 2834 में खाना बना और तीन लाख 79 हजार 915 पंजीकृत बच्चों में दो लाख तीन हजार 420 उपस्थित हुए और उसमें से एक लाख 98 हजार 965 बच्चों ने फल खाए यानी कि प्राथमिक विद्यालयों में 98 फीसद बच्चों ने फल खाए तो दूसरी तरफ उच्च प्राथमिक विद्यालयों में 1146 विद्यालयों में 1126 में मिड-डे मील बना और एक लाख 49 हजार 133 बच्चों की संख्या के सापेक्ष 77 हजार 695 बच्चे विद्यालय आए और उनमें से 74 हजार 343 बच्चों ने फल खाए। आंकड़ों में तो सब कुछ सही है पर अधिकारियों के निरीक्षण में कुछ और मिलता है। आंकड़ों और हकीकत की मान लें हर सोमवार को बच्चों की संख्या में खेल होता है और प्रति बच्चा चार रुपये का हिसाब किताब पूरा हो जाता।
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