क्षेत्र के परिषदीय विद्यालयों में लाखों रुपये खर्च कर बनाये गए शौचालयों का कोई पुरसाहाल नहीं रह गया है। विद्यालय परिसर में बने शौचालय न तो शिक्षकों के काम आ रहे है न ही छात्रों के। लाखों रुपये पानी की तरह बहाकर बनाये गए शौचालय जंगली जानवरों का आशियाना मात्र बनकर रह गए है। बगैर जलापूर्ति के न तो इन शौचालयों में कोई शौच करता है न ही सफ ाई कर्मी इनकी सफ ाई करते हैं। ऐसे में दो चार बच्चे भी यदि इनमे शौच कर लें तो यह शौचालय गंदगी का केंद्र बन जाते हैं। क्षेत्र के शत प्रतिशत विद्यालयों में शौचालय निर्मित है फि र भी विद्यालय के शिक्षक व छात्र शौच क्रिया खुले में करने को मजबूर हैं। क्योंकि इन शौचालयों में न तो सफ ाई की व्यवस्था है न ही पानी की। सरकार ने जिस उद्देश्य की पूर्ति के लिए इन शौचालयों का निर्माण कराया और समय समय पर इनके मरम्मतीकरण पर धन व्यय करती रहती है। उस उद्देश्य की पूर्ति भी यह शौचालय नहीं कर पा रहे है। बदहाल शौचालयों की हाल्ट में कोई सुधार नहीं आ रहा है। क्षेत्र के 50 प्रतिशत से अधिक शौचालयों में विगत कई वषों से ताला बंद हैं। तमाम में दरवाजे ही नहीं लगे। कु छ तो बनने के बाद ही अपनी उपयोगिता खो दिए। अपने उद्देश्य से भटके निष्प्रयोज्य पड़े इन शौचालयों की स्थिति भले कागजों पर अच्छी और उपयोगी दिखाई जा रही हो किंतु 2.4 प्रतिशत को छोड़ शेष शौचालय विभागीय व्यवस्था की पोल खोल रहे हैं। खंड शिक्षा अधिकारी रियाज अहमद कहते हैं कि साफ -सफाई की व्यवस्था ठीक न होने से विद्यालय के शौचालयों का बुरा हाल है।
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