यूपी बोर्ड के अफसर इन दिनों शैक्षिक अभिलेखों के संरक्षण को लेकर द्वंद्व में घिर गए हैं। अभिलेख संजोकर रखने वाले चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी लगातार सेवानिवृत्त हो रहे हैं। जिस तरह से विभागीय लिपिक अभिलेखों में हेराफेरी करा रहे हैं उसे देखते हुए यह काम ठेके पर संविदा कर्मियों को सौंपना खतरे से खाली नहीं है। ऐसे में अभिलेखों को फाइल की शक्ल देकर सुरक्षित रखना मुश्किल हो गया है।
माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड में करीब नब्बे साल से हाईस्कूल व इंटर उत्तीर्ण करने वाले लाखों परीक्षार्थियों के शैक्षिक रिकॉर्ड रखे जा रहे हैं। अभिलेख परिषद मुख्यालय से लेकर चारों क्षेत्रीय कार्यालय इलाहाबाद, वाराणसी, मेरठ एवं बरेली में भी हैं। कर्मचारियों की कमी का संकट सभी जगहों पर हैं। इधर कुछ साल से अभिलेखों की बाइंडिंग करने वाले कर्मचारी नहीं है। इससे कई रिकॉर्डो को प्लास्टिक कवर लगाकर सुरक्षित नहीं किया जा सका है। विभाग इस कार्य को ठेके पर यानी संविदा कर्मियों से कराने की योजना बना रहा था, इसी बीच इलाहाबाद क्षेत्रीय कार्यालय में सैकड़ों परीक्षार्थियों के मूल रिकॉर्ड बदलने की पुष्टि हो गई। इसमें रोल नंबर को छोड़कर सब कुछ बदल डाला गया, जबकि टेबुलेशन रिकॉर्ड (टीआर) को सुरक्षित रखने का जिम्मा संबंधित कर्मचारी है
अभिलेखों में हेराफेरी कांड से अफसरों के सामने रिकॉर्ड दुरुस्त रखने का संकट खड़ा हो गया है। वित्त विभाग परिषद को इस कार्य के लिए बजट नहीं देता है, इस बार बढ़ा पंजीकरण शुल्क जमा भी कराया गया, लेकिन उसका खाता खोलने की अनुमति नहीं मिल रही है। वहीं दूसरी ओर विभाग में अभिलेख बदलने की एक के बाद एक हो रही घटनाओं से कर्मचारियों पर पहले जैसा ऐतबार नहीं रह गया है। यह भी कहा जा रहा है कि जब नियमित कर्मचारी इस तरह की घटनाएं कर रहे हैं, तो संविदा कर्मचारियों से यह काम कराना कहां तक वाजिब होगा। अफसरों में अभिलेख सुरक्षित कराने के लिए नए सिरे से मंथन चल रहा है, ताकि कार्य भी पूरा हो जाए और रिकॉर्ड भी यथावत हो। अपर सचिव प्रमोद कुमार ने कहा कि रिकॉर्ड पूरी तरह से सुरक्षित हैं। विभाग में कुछ कर्मचारियों ने गड़बड़ी की हैं, लेकिन सबको दोषी नहीं कहा जा सकता। अभिलेख संरक्षित कराने पर मंथन चल रहा है।
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