हाईकोर्ट ने इलाहाबाद के जिला विद्यालय निरीक्षक (डीआइओएस) राजकुमार यादव के खिलाफ की गई सरकारी कार्रवाई को संतोषजनक नहीं माना है। कोर्ट ने कहा कि लखनऊ में सम्बद्ध करने से जांच सही नहीं हो सकेगी और महिला सहकर्मियों के शोषण को लेकर बने कानून का उद्देश्य विफल हो जाएगा। कोर्ट ने पूछा कि डीआइओएस को निलंबित क्यों नहीं किया गया और एफआइआर क्यों दर्ज नहीं की गई। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की कि उन्हें पूर्वी उत्तर प्रदेश के किसी छोटे जिले से सम्बद्ध किया जाना चाहिए था। कोर्ट ने प्रमुख सचिव माध्यमिक शिक्षा को अगली सुनवाई की तिथि सात नवम्बर को कार्रवाई की रिपोर्ट के साथ हाजिर होने का भी निर्देश दिया है।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति सुनीत कुमार की खण्डपीठ ने अधिवक्ता याची नीलेश कुमार मिश्र की जनहित याचिका पर दिया है। याची के अधिवक्ता मनीष गोयल ने कोर्ट का ध्यान पिछले आदेश पर आकृष्ट करते हुए कहा कि उसका पालन नहीं किया गया है।
राज्य सरकार के स्थायी अधिवक्ता रामानंद पांडेय ने कोर्ट को बताया कि जिला विद्यालय निरीक्षक को हटाकर लखनऊ कार्यालय में सम्बद्ध कर दिया गया है तथा प्रमुख सचिव माध्यमिक ने सचिव बेसिक शिक्षा को जांच कर रिपोर्ट देने का आदेश दिया है। जांच रिपोर्ट आने के बाद कार्यवाही की जाएगी। इनका यह भी कहना था कि यौन उत्पीड़न की शिकार एक भी महिला अध्यापिका ने पुलिस से शिकायत नहीं की है। महिलाओं की शिकायत पर विभागीय जांच नियमानुसार नहीं की गई है। बिना आरोपों की विभागीय जांच किए बिना कार्रवाई नहीं की जा सकती किंतु कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता को देखते हुए सरकारी कार्रवाई को आरोपी को बचने का मौका देने वाली करार दिया है।
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