मैं अध्यापक से बीएसए बना। इस पर हमें अभिमान था। परंतु आज इन अध्यापकों के समर्पण और मेहनत को देखकर हमें भी अफसोस हो रहा है कि हम ऐसे क्यों नहीं बन पाए। दूसरे शब्दों में कहें तो हम ऐसे बन भी नहीं सकते थे। आज समूचे शिक्षा जगत को आशीष बंधुओं पर नाज है। कुछ ऐसा ही कह गए बीएसएस हरिकेश यादव। गए थे विद्यालय का निरीक्षण करने मगर वहां जो नजारा दिखा, उससे वह अपने को रोक नहीं पाए।
बहरिया ब्लाक के शीतलपुर प्राथमिक विद्यालय में सोमवार को जो नजारा दिखा, लोग उसे वर्षो तक नही भूल पाएंगे। यहां तैनात दोनों अध्यापक दिव्यांग हैं। दोनों का नाम आशीष है। साथ ही दोनों ही गुणों की खान हैं। अपनी सच्ची और अडिग इरादे से उन्होंने आज न सिर्फ अपने विद्यालय की तस्वीर बदल दी बल्कि दूसरों के लिए एक संदेश दे डाला। इसी विद्यालय का उद्घाटन व निरीक्षण करने पहुंचे थे बीएसए।
सबसे खास बात यह थी कि विद्यालय ऊसर भूमि पर बना है। गांव में ऐसे विद्यालय की कल्पना शायद ही किसी ने की थी। तीन साल पहले इसी विद्यालय में तैनात हुए दो दिव्यांग अध्यापक। दोनों ही शिक्षा मित्र से समायोजित सहायक अध्यापक बने।
भविष्य को संवारने का बीड़ा उठाने वाले उक्त दोनों युवाओं ने शहर से 40 किलोमीटर दूर जाकर वह कारनामा कर दिखाया जिसको देख हर कोई हतप्रभ है। बाहर से ही विद्यालय की सुंदरता देख हर कोई वाह वाह कर उठता है।
ताज्जुब इस बात को लेकर है कि जब वे लोग विद्यालय आए थे तो वहां सौ बच्चे ही रजिस्टर्ड थे, लेकिन अब 229 बच्चे विद्यालय में पढ़ रहे हैं। इसमें से 99 फीसद बच्चे रोज पढ़ने आते हैं। जो बच्चा नहीं आता, उसके घर दोनों अध्यापक पहुंच जाते हैं। सोमवार को विद्यालय पहुंचे बीएसएस उनकी हौसले से इतना प्रसन्न हुए कि तुरंत उन्हें दस हजार का पुरस्कार दे दिया।
बहरिया के शीतलपुर प्राथमिक विद्यालय की बदली तस्वीर
ऊसर भूमि में खिलखिलाए गुलाब, चहक उठे नौनिहालबहरिया ब्लाक का प्राथमिक विद्यालय शीतलपुर ’ जागरणशिक्षक आशीष सिंह और आशीष कुमार।
No comments:
Write comments