महराजगंज : प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था को दुरूस्त रखने में अहम योगदान देने वाले शिक्षामित्रों के मामले में आए फैसले ने जिले के 2187 शिक्षामित्रों के भविष्य को अधर में डाल दिया है। अब गेंद राज्य सरकार के पाले में है वह चाहे तो उन्हें राहत दे सकती है। हालांकि शिक्षामित्रों को राज्य सरकार से अपने प्रति बेहतर निर्णय की उम्मीद है। जिले में शिक्षामित्र के रूप में कुल 2187 शिक्षामित्रों को प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था को संचालित करने के लिए रखा गया था। वर्ष 2009 के बाद शिक्षामित्र के रूप में भर्ती पर रोक लग गई। इसके बाद परिषदीय विद्यालयों के लिए जहां टीईटी मेरिट तथा एकेडमिक मेरिट के आधार पर शिक्षकों को नियुक्त किया गया वहीं सरकार ने दो चरण में 1975 शिक्षामित्रों को टीईटी से मुक्त कर उन्हें समायोजित किया था। इसे लेकर कुछ संघ द्वारा उच्च न्यायालय में भर्तियों को लेकर चुनौती दी गई। लंबी सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने शिक्षामित्रों का समायोजन रद्द करने का आदेश दिया। इसके बाद संघ ने उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। 17 मई 2017 को उच्चतम न्यायालय ने सभी पक्षों को सुनने के बाद अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। फैसला सुनाने के लिए 25 जुलाई की तिथि निर्धारित थी, फैसला आया तो जहां सभी शिक्षामित्रों की मुश्किलें बढ़ गई, वहीं 212 शिक्षामित्रों में इस बात का भी मलाल दिखा कि उनके सहायक अध्यापक पद पर समायोजित होने की सोच अधूरी रह गई। शिक्षामित्रों के अभाव में प्राथमिक स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था को बिगड़ने का खतरा भी उत्पन्न हो गया है। 1शिक्षामित्रों के हटने से कई विद्यालय होंगे एकल। फैसला आने के बाद शिक्षामित्रों को शासन द्वारा उठाए जाने वाले कदमों पर नजर है। शिक्षा मित्रों का कहना है कि जिले के प्राथमिक विद्यालयों में कहीं एक तो कहीं दो शिक्षक तैनात थे। पहले चरण में 819 व दूसरे चरण में 1156 शिक्षामित्रों को नियुक्ति मिल चुकी थी। उनके हटने से कई विद्यालय एकल हो जाएंगे , तथा वहां पर बच्चों की शिक्षा भी प्रभावित होगी। संघ ने उम्मीद जताई है कि प्रदेश सरकार स्थिति को समझते हुए ऐसा निर्णय लेगी जिससे शिक्षामित्रों व उनके आश्रितों की मुश्किलें कम होंगी।
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