सहारनपुर : सरप्लस शिक्षकों के समायोजन के मामले में प्रभावित शिक्षकों को संजीवनी मिल सकती है। कई जिलों में समायोजन प्रक्रिया स्थगित होने का तर्क देते हुए शिक्षक संघों ने शासन पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। स्कूलों में कार्यभार ग्रहण न करने वाले शिक्षक अब अपने ही साथियों की आंखों की किरकिरी बनने लगे हैं।
परिषदीय प्राथमिक स्कूलों में बदली परिस्थितियों के कारण समायोजन प्रक्रिया पर सवाल उठने लगे हैं। बताते हैं कि शासन के निर्देशों के अनुपालन में समायोजन प्रक्रिया 15 जुलाई तक पूरी की जानी थी। तकरीबन सभी जिलों में प्रक्रिया को पूरा करने के लिए विभागीय स्तर पर कार्रवाई आरंभ हुई। जिले में विभाग द्वारा जारी सरप्लस शिक्षकों की सूची में प्राथमिक में 611 तथा जूनियर में 117 नाम थे। कई शिक्षक संघों के विरोध के चलते 20 जुलाई को काउंसिलिंग संपन्न हुई और 21 को विभाग द्वारा 300 शिक्षकों को नए स्कूल आवंटित करने संबंधी पत्र जारी कर दिए गए। खंड शिक्षा अधिकारियों को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वे अपने-अपने ब्लाक में संबंधित शिक्षकों को पत्र देने का काम करें। हालांकि काउंसिलिंग में स्वेच्छा से स्कूल चुनने वाले शिक्षकों ने भी पत्र के मिलते ही विरोध शुरू कर दिया। कई ने विभाग के उच्चाधिकारियों और सत्तापक्ष के नेताओं के माध्यम से विभाग पर दबाव बनाना शुरू किया। दबाव के चलते स्थानीय अधिकारी भी परेशान हो गए।
विभाग से मिली जानकारी के मुताबिक 300 में से 40 प्रतिशत शिक्षकों ने नए स्कूलों में कार्यभार ग्रहण किया है। खंड शिक्षा अधिकारियों से इसके लिए विवरण मांगा जा चुका है। नए स्कूलों में कार्यभार ग्रहण न करने वाले शिक्षकों को यह संतोष है कि बदली परिस्थितियों में अब उन्हें पुराने स्कूलों से हटाने के लिए दबाव नही बनाया जायेगा। दूसरी ओर कई अन्य जिलों में समायोजन प्रक्रिया की धीमी रफ्तार का शिक्षकों को भरपूर फायदा मिला। शिक्षा मित्रों का समायोजन रद्द होने का आदेश आने के साथ ही अधिकारियों ने समायोजन प्रक्रिया पर विराम लगा दिया। उनका तर्क था कि शिक्षा मित्रों को अलग कर देने के बाद स्कूलों में छात्र-शिक्षक अनुपात स्वत: ही सही हो गया है।
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