संध्या की साधना से खिलखिलाईं बेटियां
‘बेटा-बेटी एक समान’ का नारा बुलंद कर 19 गांवों के लोगों की बदली सोच 1
नीरज सौंखिया ’ हाथरस 1बेटा व बेटी में कोई अंतर नहीं होता। यह बात गांव के लोगों को संध्या 17 साल से समझा रही हैं। वक्त जरूर लगा, मगर उन्होंने अपनी लगन से मुरसान क्षेत्र के 19 गांवों के लोगों की सोच बदल दी। कभी बेटियों के पैदा होने पर घरों में मातमी सन्नाटा पसर जाता था, अब वहां बेटियों का जन्मदिन धूमधाम से मनाया जाता है। बधाइयां गाई जाती हैं। 1टिफिन ने चौंकाया : संध्या अग्रवाल का जन्म सरकूलर रोड निवासी लक्ष्मीकांत आर्य के यहां हुआ। इनकी चार बेटी व एक बेटा है। बेटियों में संध्या सबसे छोटी हैं, जिनकी शादी 1999 में शहर में ही लेबर कॉलोनी में डॉ. जीएस मोदी के साथ हुई। वे राजकीय महाविद्यालय गुन्नौर में प्राचार्य हैं। शादी के छह महीने बाद ही वर्ष 2000 में संध्या की नौकरी बेसिक शिक्षा विभाग में अध्यापक पद पर लगी। उनकी पहली तैनाती मुरसान के गांव मगटई में हुई। यहां स्कूल में लड़कियों की संख्या न के बराबर थी। छात्रओं के टिफिन में खाना भी अच्छा नहीं होता था। पता लगा कि खाने में भी बेटियों के साथ भेदभाव किया जाता है। तब उन्होंने ग्रामीणों की सोच बदलने की ठानी। 1घर-घर दस्तक : स्कूल के बाद संध्या घर-घर जाकर महिलाओं को समझातीं कि बेटी नहीं होंगी तो वंश कैसे चलेगा? मेहनत रंग लाई। बेटियों के साथ खान-पान में होने वाला भेदभाव दूर हुआ, फिर अभिभावकों ने बेटियों को स्कूल भेजने का भी मन बनाया। कई परिवार ऐसे भी सामने आए, जो बेटियों की पढ़ाई का खर्च नहीं ङोल सकते थे। संध्या ने किताब व फीस जमा करने में उनकी मदद की। किसी घर में बेटी का जन्म होने पर संध्या वहां पहुंचतीं और आसपास की महिलाओं को इकट्ठा कर बधाई गीत गातीं। हालात बदले और बेटियों का जन्मदिन मनाया जाने लगा। 1पड़ोसी गांव : संध्या ने आसपास के नगला कृपा, केसरगढ़ी, अमरपुर, दयालपुर, हतीसा, भगवंतपुर, खेड़ा बरामई समेत 19 गांवों में जनजागरण शुरू किया। वहां भी लोगों की बेटियों के प्रति सोच बदली। 2007 में प्रमोशन होने पर संध्या एबीआरसी होकर हतीसा आ गईं। यहां भी बेटी पढ़ाओ का नारा बुलंद किए हुए हैं
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