फर्जी डिग्रियों को लेकर जिले में फिर से हलचल नजर आने लगी है। काफी समय बाद वर्ष 2004 में फर्जी बीएड की मार्कशीटों से बेसिक शिक्षा में नौकरी पाने के मामलों का खुलासा होने के बाद मुन्ना भाइयों की पकड़ के लिए यहां भी माथापच्ची शुरू हो गई है। बेसिक शिक्षा निदेशालय ने फर्जी डिग्री धारियों की सूची की सीडी विभाग को उपलब्ध करा दी है। इसी के द्वारा मुन्ना भाइयों के चिन्हांकन को लेकर विभाग ने तैयारी कर दी है। सोमवार से गोपनीय तरीके से सीडी के आधार पर चिन्हांकन शुरू हो जाएगा। जनपद के पिछले फीडबैक पर नजर डालें तो इस सूची में भी कई यहां के मुन्ना भाई हो सकते हैं। कारण यही है कि जिले में फर्जी शैक्षिक प्रमाणपत्रों के मामले पहले भी सामने आते रहे हैं।
वैसे तो वर्ष 2004 में डा. भीमराम अंबेडकर विश्वविद्यालय आगरा में हुए फर्जीवाड़े का मामला काफी समय से जांच के दायरे में ही रहा है। वर्ष 2005 और 2006 में बड़े पैमाने पर जिले में शिक्षक भर्तियां हुईं, जिनमें 2004 के बीएड डिग्री धारकों ने भी काफी संख्या में बेसिक शिक्षा के सहायक अध्यापक के पदों पर काफी नियुक्तियां पाईं। अब जब फर्जीवाड़े की स्थिति साफ होने के साथ ही शासन के पास उन डिग्रीधारियों की सूची है, जिन्होंने विश्वविद्यालय से फर्जी डिग्रियां हासिल की हैं। उनके गले तक अब हाथ पहुंचने में ज्यादा देरी नहीं है।
शासन से संबंधित फर्जी डिग्री धारकों की सीडी हर जिले के बेसिक शिक्षा विभाग को उपलब्ध करा दी हैं। बीएसए एसके तिवारी का कहना है कि सीडी मिल चुकी है तथा फर्जी डिग्री धारकों का चिन्हांकन कराया जा रहा है। जल्दी ही स्थिति स्पष्ट हो जाएगी। 12010-11 में भी खुला था फर्जी डिग्रियों का खेल: वैसे तो दर्जनभर शिक्षकों की डिग्रियां वर्ष 2010 से पहले भी फर्जी पाने के कारण उनके विरुद्ध मुकदमे दर्ज हो चुके हैं। सबसे बड़ा फर्जीवाड़ा बीटीसी 2010-11 के दौरान सामने आया था, जब उच्च मेरिट बनाने के लिए चार दर्जन से ज्यादा अभ्यर्थियों ने बनारस विश्वविद्यालय से फर्जी अंकपत्र व प्रमाणपत्र बनवा लिए थे। तत्कालीन जिलाधिकारी की गंभीरता से मामला प्रवेश से पहले ही खुला। डायट प्रशासन ने संबंधित के विरुद्ध कानूनी कार्रवाई भी अमल में लाई।
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