लखनऊ : उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड का विलय कर राज्य शिक्षा सेवा आयोग बनाने का योगी सरकार का इरादा फिलहाल ठंडे बस्ते में चला गया है। शिक्षा सेवा आयोग के गठन की बजाय दोनों भर्ती संस्थाओं के पुनर्गठन की प्रक्रिया शुरू कर सरकार ने फिलहाल यही संकेत दिया है।
सत्ता पर काबिज होने के साथ ही योगी सरकार ने उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भंग कर दोनों संस्थाओं का विलय कर राज्य शिक्षा सेवा आयोग के गठन का न सिर्फ इरादा जताया था बल्कि इसके लिए कवायद भी शुरू हो गई थी। शासन की घेराबंदी के चलते उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष प्रभात मित्तल और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के अध्यक्ष हीरालाल गुप्ता को इस्तीफा भी देना पड़ा था। सूबे की नई सरकार को अंदेशा था कि इन संस्थाओं में भर्तियों में धांधलियां हुई हैं। साथ ही, मितव्ययता के तकाजे और दोहराव से बचने के लिए यह भी मंशा थी कि महाविद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों व प्राचार्यों/प्रधानाध्यापकों की भर्तियों के लिए दो की बजाय एक ही संस्था हो।
उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग पर जहां अशासकीय सहायताप्राप्त महाविद्यालयों के प्रवक्ताओं व प्राचार्यों के चयन की जिम्मेदारी है। वहीं माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड पर अशासकीय सहायताप्राप्त माध्यमिक विद्यालयों के शिक्षकों व प्रधानाचार्यों की भर्ती का दायित्व है। 1अशासकीय सहायताप्राप्त महाविद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में बड़ी संख्या में शिक्षकों और प्राचार्यों/प्रधानाध्यापकों के पद खाली हैं। दोनों भर्ती संस्थाओं को भंग किये जाने से इनके द्वारा की जाने वाली चयन प्रक्रिया लंबे समय से रुकी हुई है। उधर नये आयोग के गठन में काफी समय लगने की संभावना है। सरकार पर दबाव है कि वह जल्द से जल्द महाविद्यालयों और माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षकों के रिक्त पद भरे।
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