इलाहाबाद : यूपी बोर्ड की परीक्षा में नकल रोकने के लिए भले ही राजकीय व अशासकीय कालेजों को वरीयता देने के निर्देश हुए लेकिन, धरातल पर तस्वीर बिल्कुल उलट है। राजकीय व वित्त पोषित जितने कालेज परीक्षा केंद्र बन सकें हैं, उस संख्या में आधे से अधिक कालेजों को केंद्र नहीं बनाया जा सका है। साफ्टवेयर से बोर्ड मुख्यालय पर केंद्र बनाने का निर्देश देकर निजी कालेजों पर अंकुश लगाने के प्रयास जरूर हुए, लेकिन केंद्रों की असली मलाई शिक्षा माफियाओं ने ही खाई है।
यह लाभ निजी कालेजों को इसलिए भी मिल गया, क्योंकि अधिक कालेज वित्तविहीन के ही हैं। यूपी बोर्ड प्रशासन ने परीक्षा केंद्रों की अनंतिम सूची का निर्धारण पूरा होने के बाद जो आंकड़ें उपलब्ध कराएं हैं, वह चौकाने वाले हैं। भले ही कालेजों की अधिक संख्या होने के कारण वित्तविहीन स्कूलों को अधिक संख्या में परीक्षा केंद्र बनने का मौका दिया गया लेकिन, उससे बड़ी बात यह है कि राजकीय के 1533 व अशासकीय के 1094 कालेज केंद्र नहीं बन सके हैं, अन्यथा केंद्रों की संख्या में निजी कालेजों का प्रतिनिधित्व और घट जाता।
यह सब इसलिए संभव हो सका, क्योंकि जिला विद्यालय निरीक्षकों ने न केवल शासन के निर्देशों की अनदेखी की, बल्कि निजी कालेजों को केंद्र बनवाने में विशेष रुचि दिखाई। बोर्ड सूत्रों की मानें तो शासन ने परीक्षा की शुचिता बनाए रखने के लिए वीडियो कांफ्रेंसिंग करने के साथ ही कई पत्र सीधे डीआइओएस को जारी किए। इसमें बार-बार कहा गया कि वह कालेजों का सत्यापन सही से करें और संसाधनों के अंक छानबीन करके ही भरें जाएं। यही नहीं बोर्ड ने भी इस संबंध में कई निर्देश जारी किए, लेकिन उन सबकी अनदेखी की गई। जिलों में डीआइओएस ने बाकायदे यह प्रचार किया कि भले ही केंद्र बोर्ड बनाएगा लेकिन, डाटा आदि वही मुहैया कराएंगे। इससे केंद्र बनवाने के इच्छुक कालेज संचालक डीआइओएस कार्यालय की परिक्रमा करते रहे और उसमें सफल हो गए।
जब शासन ने यह तय कर दिया कि वरीयता राजकीय व अशासकीय को मिलेगी तब भी डीआइओएस ने उन स्कूलों की डाटा फीडिंग में बड़े पैमाने पर हेरफेर कर दिया। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि लखनऊ के जिस शिवनंदन इंटर कालेज छतौनी का परीक्षा केंद्र 57 किलोमीटर दूर गया है उसके डाटा फीडिंग में एक भी कक्ष दर्ज नहीं है। अफसरों ने इस बात की चिंता नहीं कि आखिर जो विद्यालय 35 साल से केंद्र बन रहा है, क्या वहां एक भी कक्ष नहीं है। यदि ऐसा है तो उसकी मान्यता कैसे चल रही है? कालेज के प्रधानाचार्य ने फीडिंग रिपोर्ट के साथ प्रत्यावेदन दिया कि उन्होंने सारी सूचनाएं अंकित की थी, शायद उन्हें बदल दिया गया।
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