बोर्ड में केंद्र निर्धारण के लिए ‘परीक्षा’ हुई। इसमें ज्यादा अंक पाने वाले तमाम विद्यालय फेल हो गए, वहीं कई कालेज कम अंक पाकर भी केंद्र बनने में सफल रहे हैं। यह अलग तरीके का इम्तिहान सेटिंग-गेटिंग के ‘मकड़जाल’ को तोड़ने के लिए हुआ, फिर भी कई स्कूल इस चक्रव्यूह को सकुशल भेदने में सफल रहे हैं। बोर्ड प्रशासन ने कालेजों की धारण क्षमता आदि में सिर्फ जिला विद्यालय निरीक्षकों (डीआइओएस) की फीडिंग पर ही ऐतबार नहीं किया, वरना केंद्रों की सूची में निजी कालेजों की संख्या और अधिक हो जाती।
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माध्यमिक शिक्षा परिषद यानी यूपी बोर्ड मुख्यालय पर पहली बार कंप्यूटर के जरिये परीक्षा केंद्र बनाए गए। इस प्रक्रिया में हर जिले में विशेष मॉड्यूल अपनाया गया। मसलन, कालेजों में उपलब्ध संसाधन के लिए 200 अंक निर्धारित थे। हर जिले में जिस कालेज ने 200 में से सबसे अधिक अंक अर्जित किए उसे केंद्र मानकर आठ किलोमीटर दायरे के विद्यालयों का क्लब बना लिया गया, तब यह देखा गया कि इस क्लब में कुल कितने परीक्षार्थी हैं। 1अंकों की वरीयता के आधार पर परीक्षार्थियों का आवंटन संबंधित कालेजों में हुआ। इसमें मान लीजिए जिस कालेज को सर्वाधिक 185 अंक मिले थे, उसकी धारण क्षमता पूरी होने के बाद उससे कम अंक वाले कालेज को चुना गया और 180 अंक पाने वाले कालेज में ही परीक्षार्थियों का आवंटन पूरा हो गया तो अन्य कालेजों पर विचार नहीं हुआ, वह सब केंद्र बनने की सूची से बाहर हो गए। वहीं, दूसरे आठ किलोमीटर के क्लब में 130 अंक वाला कालेज सबसे ऊपर मिला तो बोर्ड ने उसे केंद्र बनाने में हिचक नहीं दिखाई और पहले चरण की प्रक्रिया दूसरे में दोहराई गई। इसीलिए कई अच्छे संसाधन वाले कालेज केंद्र स्थापना से बाहर हुए हैं। इसी तरह से हर जिले में केंद्र बनाए गए।
संसाधन पर भारी रहा प्रभाव : बोर्ड परीक्षा केंद्र में कालेजों के संसाधन से अधिक बड़ों का प्रभाव काम आया। राजकीय इंटर कालेज उन्नाव को 300 परीक्षार्थी का केंद्र बनाने का अनुमोदन हुआ, लेकिन जीआइसी देखकर उसे 600 परीक्षार्थी आवंटित कर दिए गए हैं। इतने परीक्षार्थी बैठाने की व्यवस्था वहां नहीं है।गड़बड़ी कहां और कैसे हुई 1केंद्र निर्धारण में तमाम विद्यालयों का परीक्षा केंद्र 15 से 20 किलोमीटर की दूरी पर चला गया है। डीआइओएस ने दूरी अधिक होने के बाद भी सत्यापन रिपोर्ट में उसे पांच से 12 किलोमीटर दर्ज किया है। दूरी मापने के लिए बना मोबाइल एप भी इसमें कारगर नहीं रहा, हालांकि बोर्ड ने दर्ज सूचनाओं की गूगल मैपिंग से उसकी जांच भी की थी, लेकिन दूरी दर्ज करने में फिर भी गलती हुई। इसी तरह से धारण क्षमता में भी डीआइओएस की ओर से दर्ज कमरों की संख्या और छात्र संख्या पर ऐतबार नहीं किया गया। इसके लिए कमरे की लंबाई-चौड़ाई और उसमें बैठने वाले परीक्षार्थियों का अलग से मापन किया गया। इसमें कुछ हद तक सफलता भी मिली। वरना डीआइओएस की रिपोर्ट के आधार पर ही केंद्र बनते तो निजी कालेजों की संख्या और अधिक होती।
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