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Friday, November 3, 2017

एक पर निशाना, बाकी पर जांच का बहाना, सरकार उप्र लोकसेवा आयोग की सीबीआइ जांच का एलान कर चुकी, चयन बोर्ड, उच्चतर शिक्षा आयोग व अधीनस्थ आयोग में कार्रवाई नहीं


भर्तियों में ऐसे आरोप :-

➡️उच्चतर आयोग में बड़ी संख्या में सादी कॉपियां मिली व कोरम पूरा हुए बिना साक्षात्कार हुए। 
➡️भूगोल सहित कई विषयों परिणाम से अभ्यर्थी अब भी संतुष्ट नहीं। 
➡️चयन बोर्ड में हर परिणाम को कई-कई बार बदला गया। 
➡️सदस्यों पर मनमाने तरीके से अंक देने के आरोप लगा

सूबे की सत्ता में आने के बाद भाजपा सरकार ने 22 मार्च को उप्र लोकसेवा आयोग में चल रहे साक्षात्कार व परीक्षा परिणाम जारी करने पर रोक लगा दी थी। सरकार का यह निर्णय अभूतपूर्व रहा, क्योंकि आयोग के इतिहास में पहली बार प्रदेश सरकार ने आयोग को इस तरह आदेश दिया। इंटरव्यू व रिजल्ट रोकने की वजह भर्तियों में हुई गड़बड़ियों की जांच करना बताया गया। तीन माह बाद 19 जुलाई को सरकार ने आयोग में बीते पांच वर्ष में हुई भर्तियों की सीबीआइ से जांच कराने का एलान किया।
आयोग की जांच की घोषणा हुए तीन माह बीत चुका है। अब तक सीबीआइ जांच शुरू नहीं हो सकी है, लेकिन जांच की तलवार आयोग पर लटकी जरूर है। सरकार ने मार्च माह में ही उप्र उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, उप्र माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और अधीनस्थ सेवा आयोग उप्र में चल रही भर्तियां भी रुकवा दी। इन आयोगों में चल रही भर्तियों को रोके जाने का कारण भी गड़बड़ियों की जांच करना बताया गया। 
वहीं, बेसिक शिक्षा परिषद ने भी प्राथमिक शिक्षकों की व शिक्षा निदेशालय ने भी 9342 भर्ती की प्रक्रिया जहां की तहां रोक दी। इन सभी भर्ती आयोगों व संस्थानों में भर्ती प्रक्रिया मार्च से ठप पड़ी है, लेकिन इन दौरान भर्तियों की न तो कोई जांच कराई गई। इसके उलट उच्चतर आयोग व चयन बोर्ड के विलय का शिगूफा जरूर छोड़ा गया। इससे दोनों आयोगों के अध्यक्ष व सदस्यों ने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया। 
अब आयोगों का एक-एक करके पुनर्गठन हो रहा है। उच्चतर व चयन बोर्ड में अध्यक्ष व सदस्यों का विज्ञापन जारी हो चुका है, जबकि अधीनस्थ आयोग के लिए पहले ही तमाम लोगों ने दावेदारी की है। वहीं, प्राथमिक स्कूलों की शिक्षक भर्ती भी दिसंबर में शुरू होनी है और एलटी ग्रेड भर्ती कराने का जिम्मा उप्र लोकसेवा आयोग को सौंपा गया है। इन सबके बीच भर्तियों की जांच का मुद्दा गुम हो गया है और प्रतियोगियों की उम्मीदें धूमिल हो चली हैं। 

"देर से मिले न्याय को न्याय नहीं माना जाता। इसी तरह से भर्तियों की जांच को लंबे समय तक लटकाया जाना उचित नहीं है। आयोग की जांच जल्द शुरू हो व अन्य भर्तियों की भी जांच होनी चाहिए।"अवनीश पांडेय, प्रतियोगी मोर्चा

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