थोड़े से की थी शुरुआत
परिषदीय स्कूलों की इमेज भले की चाहे जैसी हो लेकिन एक स्कूल के 5 शिक्षकों ने नजीर पेश की है। बसडीला प्राथमिक स्कूल के इन शिक्षकों ने प्राथमिक स्कूलों की दुश्वारियों और संसाधनों की कमी के बीच से आगे बढ़कर ठोस पहल की। स्कूल में अपने वेतन से प्रोजेक्टर लगवाया और लैपटाप की व्यवस्था की। अब यहां बच्चे कुर्सी-मेज और बेहतरीन कालीन पर प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ते हैं। कुछ बच्चे फर्राटेदार लैपटाप भी चलाते हैं।कोई एक साल पहले की बात है। बसडीला प्राथमिक स्कूल में बच्चों की संख्या महज 40 थी। अब संख्या 170 के पार है। इस स्कूल के जो बच्चे ककहरा तक नहीं पढ़ पा रहे थे वे अब लैपटाप चला रहे हैं। प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ाई कर रहे हैं। यह बदलाव लाए हैं यहां तैनात 5 शिक्षक। इस स्कूल पर प्रधानाध्यापक आशुतोष कुमार सिंह हैं। जिस समय उनकी तैनाती हुई स्कूल के हालात बेहद खराब थे। बच्चों की संख्या अच्छी थी न ही उनके पढ़ने-लिखने की उचित व्यवस्था ही थी। प्रधानाध्यापक ने शिक्षिका अर्चना सिंह, संयोगिता सिंह, श्यामा रानी गुप्ता व मोनिका श्रीवास्तव के साथ बैठक की। बैठक के बाद शिक्षक-शिक्षिकाओं ने खुद के वेतन से 2 प्रोजेक्टर, 2 लैपटाप, साउंड सिस्टम, व्हाइट बोर्ड खरीदा। फिर तय किया बच्चों को बैठने के लिए उचित प्रबंध किया जाए। शिक्षक-शिक्षिकाओं ने कुर्सी-मेज और अच्छी कालीन खरीदी। पंखे लगवाए। स्कूल की दीवारों पर रंग-रोगन कराया। बदल गई स्कूल की तस्वीर: अब इस स्कूल की तस्वीर पूरी तरह बदल गई है। यहां बच्चे बाहर से किसी के आने पर तुरंत खड़े होते हैं और गुड मार्निंग और गुड इवनिंग बोलते हैं। शिक्षक-शिक्षिकाएं भी मेहनत कर रहे हैं। बच्चों को लैपटॉप और प्रोजेक्टर के जरिए पढ़ा रहे हैं। छोटे बच्चों को खेल-खेल में ककहरा सिखाते हैं। बसडीला प्राथमिक स्कूल अब कान्वेंट स्कूलों को टक्कर दे रहा है। जिला मुख्यालय से 20 किमी दूर है स्कूल : प्राथमिक स्कूल बसडीला जिला मुख्यालय से तकरीबन 20 किलोमीटर दूर है। शिक्षक-शिक्षिकाओं ने कुछ मानक तय किए हैं। समय से स्कूल पहुंचते हैं। तय समय पर ही छुट्टी करते हैं। जब तक रहते हैं, हर कोई मेहनत करता है। बच्चे भी उनके बताए अनुसार शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं।प्रधानाध्यापक के दोस्त ने भी की मदद : स्कूल की व्यवस्था को सुधारने में प्रधानाध्यापक आशुतोष कुमार सिंह के दोस्त कानपुर के डिप्टी कमिश्नर सेल्स टैक्स राजेश गुप्ता ने भी सहयोग किया। प्रधानाध्यापक ने बताया कि बेंच-डेस्क की खरीददारी में 25 हजार रुपये की कमी पड़ रही थी तो राजेश से बात की। उन्होंने तत्काल मदद की।
इस स्कूल के शिक्षक-शिक्षिकाएं पहले हर माह अपने वेतन से 2-2, 3-3 हजार रुपया सहयोग किया। 10 हजार रुपया जुटाकर पंखा, व्हाइट बोर्ड खरीदा। इसके बाद करीब 60 हजार रुपया जुटाकर प्रोजेक्टर, लैपटॉप और साउंड सिस्टम की खरीदारी की। इसके बाद बच्चों के बैठने के लिए डेस्क-बेंच की व्यवस्था की गई। इसमें करीब 70 हजार रुपये का खर्च आया। शिक्षकों ने फिर धन जुटाया और स्कूल की दीवारों को शिक्षाप्रद चित्रों से रंग-रोगन कराया।फर्राटे से पढ़ते हैं बच्चेबसडीला स्कूल के शिक्षकों ने बताया कि शुरूआती दौर में बच्चों को प्रोजेक्टर और लैपटॉप पर अंग्रेजी पढ़ने में परेशानी हुई। अब वे फर्राटे से सबकुछ पढ़ लेते हैं। कक्षा 3 से 5 तक के बच्चों के लिए प्रोजेक्टर और लैपटॉप है। कक्षा एक और दो के बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाया जाता है। प्राथमिक विद्यालय बसडीला में महज तीन कमरे और एक बरामदा है। इन्ही कमरों में बच्चे पढ़ते हैं।
No comments:
Write comments