मूलरूप से गाजियाबाद की रहने वाली मीनाक्षी शर्मा ने शिक्षा में नवाचार से बेसिक विद्यालय की तस्वीर बदल दी। विषयवार पूरे पाठ्यक्रम को कलाकृति से दीवारों पर उकेर कर उन्होंने शिक्षा का म्यूजियम सरीखा बना दिया। कठपुतलियों से नौनिहालों को पाठ पढ़ाने की विधा भी अद्भुत है। अंगुलियों के इशारे पर कठपुतलियां नचाकर बच्चों को उसी समय पाठ याद करा देना उनकी शैली का अनोखा अंदाज है।
मीनाक्षी की कक्षा के बाद बच्चों में बिना किताब देखे ही फटाफट उत्तर देने की होड़ शुरू हो जाती है। उन्हें क्लास में बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाते देख ऐसा लगता है मानो दीवारें बोल रही हों और किताबें नाच उठ रही हों। उप्र के शाहजहांपुर स्थित भावलखेड़ा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय नियामतपुर की शिक्षक मीनाक्षी कठपुतलियां भी खुद बनाती हैं। बच्चों से घर के खराब कपड़े व बेकार वस्तुओं को मंगाकर कठपुतलियां बनाकर पढ़ाना, फिर उन्हें बांट देने की प्रवृत्ति ने उन्हें शिक्षकों में भी प्रिय बना दिया है। इसी तरह दीवारों पर विषय अनुरूप कलाकृति बनाने में भी बच्चों को शामिल करती हैं। इससे बच्चों की आर्ट भी अच्छी हो गई और वे पढ़ाई में भी कमाल कर रहे हैं।
अध्यापन की नायाब विधा बच्चों को खूब रास आ रही है। कोई भी विद्यार्थी मीनाक्षी की कक्षा को छोड़ना नहीं चाहता। इससे दो साल भीतर ही विद्यालय में उपस्थिति का आंकड़ा 70 फीसद से 95 फीसद के करीब हो गया है।
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