टीचर आए, कोर्स पूरा कराने की हड़बड़ाहट में रटे रटाए पाठ पढ़ाए और शैक्षिक सत्र पूरा..। किसी से छिपा नहीं है। उच्च से लेकर बेसिक शिक्षा इसी भागमभाग की शिकार है। नतीजा, जिस ज्ञान को लेने बच्चे स्कूल जाते हैं, वही उनमें गायब है। इस दिक्कत को दूर करने के प्रयास तमाम स्तर से हो रहे हैं लेकिन, सरकारी सिस्टम सिर्फ बयानों तक सिमटकर रह जाता है। खैर, इन सब के बीच पढ़ाई के बेपटरी फामरूले में सुधार का एक प्रयास बरेली की डायट प्रवक्ता डॉ. शिवानी यादव ने ईजाद किया है। शिक्षक केंद्रित व्यवस्था बदलकर उन्होंने छात्रों को ज्यादा जिम्मेदार बनाया है। शिक्षकों की भूमिका महज सुगमकर्ता (फैसिलेटर) तक सीमित है। जिले के करीब 30 स्कूलों में यह प्रयोग काफी सफल साबित हुआ है। 1शिवानी का फामरूला : डॉ. शिवानी मोबाइल, लैपटॉप, कंप्यूटर, इंटरनेट, ऑडियो, वीडियो का प्रयोग ज्यादा से ज्यादा पढ़ाने में करती हैं। खेल-खेल में शिक्षा पर जोर है। छात्रों को ज्यादा से ज्यादा प्रोजेक्ट वर्क दिया जाता ताकि उनमें पढ़ने की आदत विकसित हो। वे खुद तैयारी करके उस विषय को समझकर जुड़ें। इस से उन्हें रटने की जरूरत नहीं होती। दिमाग में पूरा चैप्टर बैठ जाता है। 1ऐसे शुरू हुई पहल : जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान (डायट) की प्रवक्ता डॉ. शिवानी यादव ने वर्ष 2012 से पठन-पाठन बदलने पर काम शुरू किया। उन्होंने महसूस किया कि काबिल शिक्षक ही आज छात्रों को बेहतर ढंग से तैयार कर सकते हैं। असल में पढ़ाई में का ढर्रा बदलना होगा। यही सोचकर उन्होंने 2012 से 2017 तक के बीच ट्रेनिंग लेने शिक्षकों के बैच का एक गूगल ग्रुप बनाया। उसमें एक हजार प्रशिक्षु शिक्षकों के पढ़ाने के तरीके में बदलाव किया। इस ग्रुप के जरिए प्रशिक्षु को मैसेज भेजकर, उसमें शिक्षण के तरीकों पर विमर्श करके सुधार किया गया। शिक्षकों के पढ़ाने के ऑडियो, वीडियो, इंटरनेट, मोबाइल, लैपटॉप, प्रोजेक्टर के जरिए रचनात्मक प्रयोग करके शिक्षा को रोचक बनाया। बाद में इन शिक्षकों को जिले के 30 स्कूलों में नई तकनीक का प्रयोग करने के लिए भेजा गया। ट्रेंड शिक्षक पढ़ाने के दौरान बच्चों का वीडियो शूट करते हैं, जिसे बाद में शिक्षक ग्रुप में भेजा जाता है। अच्छी प्रक्रिया होने पर अन्य शिक्षक भी अपनाते हैं
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