जागरण संवाददाता, शामली : ‘कोई ना छूटे इस बार, शिक्षा है सबका अधिकार’, ‘एक भी बच्चा छूटा, संकल्प हमारा छूटा।’ यह नारा गांव-गांव गली-गली गूंज रहा है। नारों व दावों में बचपन बुरी तरह फंस गया है। बेहतर भविष्य के लिए बच्चों को स्कूलों में भेजा जा रहा है, लेकिन नौनिहाल खतरे में है। स्कूलों में न साफ-सुथरा माहौल है, न ही पानी। चार दीवारी बिन स्कूलों में आवारा जानवर घूमते रहते हैं। भवन की गारंटी भी मास्साब के पास नहीं है। गरीबी को तन पर ओढ़े आज भी सैंकड़ों बच्चे सरकारी स्कूलों पर आश्रित है। बेहतर कल की उम्मीद और मजबूरी में अपने जिगर के टूकड़ों को खतरे में डालने को ममता मजबूर है।
जिले में सरकारी स्कूलों की यही हकीकत है। शहरी स्कूलों में व्यवस्थाएं को परखा जाता है लेकिन ग्रामीण क्षेत्र में ऐसा नहीं है। यहां कागजी दौरे में सब कुछ दुरुस्त है। सच्चाई बेहद भयानक है। देहात के स्कूल सुबह-शाम पशुओं की आरामगाह बने है। कई स्कूलों तो पढ़ाई के दौरान भी घेर (पशुओं को बांधने का स्थान) बने रहते हैं। प्रधानजी हो या मास्साब, मजाल जो ना-नुकर कर सके। सभी व्यसन पूरा करने का ठिकाना शिक्षा के मंदिर बन गए हैं। जरूरत पड़ने पर यह लोग स्कूल से सिलेंडर व पंखों पर हाथ साफ कर देते हैं। रिपोर्ट दर्ज कराकर चोरी का अध्याय बंद हो जाता है। शौचालय की गंदगी और खराब हैंडपंप का दंश नौनिहाल स्कूल आने पर भुगतते हैं। परिषदीय स्कूल खुलने में चंद दिन शेष है। बच्चे फिर भविष्य की चिंता लेकर शिक्षा के मंदिर में आएंगे। स्कूल बंद होने से पहले जो स्थिति उन्होंने छोड़ी थी, वहीं आज भी जस की तस है। गंदगी और आवारा जानवरों दोनों यहां मौजूद है।
थानाभवन ब्लॉक की बात करें। यहां 144 परिषदीय स्कूल है। इनमें करीब 13 हजार 700 से अधिक बच्चे पढ़ते हैं। यहां व्यवस्थाएं माकूल कही जा रही है। हकीकत इससे जुदा है। अनेक स्कूलों में बाउंड्री वॉल नहीं है। पीने को पानी नहीं है, शौचालय टूटे पड़े है। प्राथमिक विद्यालय अंबेहटा में दो हैंडपंप है। एक पानी नहीं देता है, दूसरे से गंदगी आती है। घर से पानी लाना बच्चों की मजबूरी है। शौचालयों में दीवारों के अलावा कुछ नहीं है। स्कूल में गंदगी के अंबार है। प्राथमिक विद्यालय नागल में शौचालय बस सांकेतिक है। यहां बच्चों को पीने और धोने के लिए घर से ही पानी लाना पड़ता है। बाकी सुविधाओं पर तो बात ही मत करिए। प्राथमिक विद्यालय इस्माइलपुर में चारदीवारी, फर्नीचर नहीं है। खुले में बच्चे पढ़ते हैं। बीस मीटर दूर स्थित मुर्गी फार्म की गंदगी व बदबू बच्चों को बीमारी बांट रही है। इन दो स्कूल के हालात जिले की शिक्षा व्यवस्था की हालात बयां कर रहे है
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