राज्य ब्यूरो, लखनऊ : स्वास्थ्य विभाग ने तो स्कूल न जाने वाले बच्चों की भी परवाह करते हुए उन्हें पेट के कीड़े मारने वाली दवा खिलाने के लक्ष्य में शामिल किया था, लेकिन निजी स्कूलों ने इसे लेकर न तो अपने विद्यार्थियों की सेहत की चिंता की और न ही सरकारी स्वास्थ्य कार्यक्रम का लिहाज किया। नतीजा यह हुआ कि प्रदेश में लगभग सवा करोड़ बच्चे कीड़े मारने की दवा खाने से वंचित रह गए।
राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के महाप्रबंधक डॉ.हरिओम दीक्षित ने बताया कि यू-डाइस संस्था द्वारा किए गए स्कूलों के सर्वेक्षण के आधार पर छह से 19 साल तक के स्कूल जाने वाले कुल बच्चों में से करीब 80 फीसद को कीड़े मारने की दवा खिलाने के लक्ष्य में शामिल किया गया था। इसी तरह आंगनबाड़ी केंद्रों में जाने वाले एक से पांच साल तक के 80 फीसद बच्चों के साथ स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्रों में न जाने वाले बच्चों को भी जनगणना के आंकड़ों के आधार पर शामिल करते हुए कुल 7.09 करोड़ बच्चों का लक्ष्य निर्धारित किया गया था। चूंकि अगस्त 2016 में लक्ष्य के सापेक्ष 63.73 फीसद और फरवरी 2017 में 84.49 फीसद बच्चों को कीड़े मारने की दवा खिलाई गई थी, इसलिए इस बार इससे आगे जाने की उम्मीद की जा रही थी, लेकिन निजी स्कूलों के असहयोग ने स्वास्थ्य विभाग को करीब 83 फीसद पर ही रोक दिया।
निजी स्कूलों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता के अभाव ने भी बच्चों को सेहतमंद रखने वाली एल्बेंडाजॉल की राह में रोड़ा अटकाया है। स्वास्थ्य अधिकारियों का अनुभव बताता है कि कई जगह जहां ग्रामीणों को दवा पर विश्वास नहीं है तो कई जगह लापरवाही के कारण बच्चे इससे वंचित हो रहे है। डॉ. दीक्षित ने बताया कि छूटे बच्चों को 17 अगस्त के मॉपअप राउंड में शामिल करने के लिए सभी मुख्य चिकित्सा अधिकारियों को पत्र भेजा जा रहा है।
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