छोटे बच्चों के प्रवेश में कालेज नहीं कर सकते मनमानी
कक्षा एक के प्रवेश में छात्र का छह लोगों ने लिया साक्षात्कार
विधि संवाददाता, इलाहाबाद : हाईकोर्ट ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से वित्तपोषित एबीके हाईस्कूल में कक्षा एक में प्रवेश परीक्षा में सफल छात्र को छह सदस्यों की टीम के समक्ष साक्षात्कार के बाद मनमाने ढंग से फेल करने के खिलाफ याचिका को जनहित याचिका में तब्दील कर दिया है।
कोर्ट ने कहा है कि एक छोटे बच्चे को कक्षा एक में प्रवेश देने के लिए शैक्षिक योग्यता की परीक्षा लेने व साक्षात्कार में 40 फीसदी अंक की अनिवार्यता सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के विपरीत है। कोर्ट ने यह भी कहा कि उसे ऐसे मामले की सुनवाई कर मनमानी पर अंकुश लगाने का क्षेत्रधिकार नहीं है, इसलिए कोर्ट स्वत: याचिका को जनहित याचिका में बदलते हुए जनहित याचिका की सुनवाई करने वाली पीठ के समक्ष दो हफ्ते में पेश करने का आदेश दे रही है। यह आदेश न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा ने छात्र प्रिंस के पिता विजय सिंह की याचिका पर दिया है।
याचिका पर अधिवक्ता बीएन सिंह व प्रमेंद्र प्रताप सिंह ने बहस की। याची का कहना है कि उसके पुत्र ने कक्षा एक में प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण की। इसके बाद उसे छह अध्यापकों के पैनल के समक्ष साक्षात्कार के लिए बुलाया गया। हर सदस्य ने एक सवाल पूछा। उसने सही जवाब दिया, किंतु जब परिणाम घोषित हुआ तो उसे फेल दिखाया गया। साक्षात्कार में केवल आठ अंक दिए गए। नियम यह है कि 100 अंक की लिखित परीक्षा में सफल अभ्यर्थी को 25 अंक के साक्षात्कार का 40 फीसदी अंक पाना अनिवार्य है। मनमाने तौर पर कम अंक देकर फेल कर दिया गया। आरटीआइ में कारण पूछा गया तो कोई जवाब नहीं आया। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि साक्षात्कार लिखित परीक्षा के अंक से 15 फीसदी से नहीं होगा और साक्षात्कार में 33 फीसदी अंक देना अनिवार्य है। विश्वविद्यालय ने इस आदेश का खुला उल्लंघन किया है। कोर्ट ने विश्वविद्यालय के रवैये पर आश्चर्य व्यक्त किया कि ऐसी मनमानी की अनुमति नहीं दी जा सकती।
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