बदलाव - कानपुर के युवाओं ने बदल दी सरकारी प्राइमरी स्कूल की सूरत
हर 15 दिन में एक्स्ट्रा क्लास
बदलते दौर में बच्चों में पनप रहे टैलंट को बाहर निकालने के लिए भी यह लोग पूरा प्रयास कर रहे हैं। हर 15 दिन में स्टूडेंट्स के लिए सिंगिंग, डांसिंग और ड्रॉइंग की क्लास ली जाती है। बच्चों को ‘गुड टच’ और ‘बैड टच’ के बारे में भी जागरूक किया गया है। बकौल अमित, कोशिश यह है कि इस स्कूल को एक आदर्श के तौर पर विकसित किया जाए। यहां बचे हुए कुछ काम भी पूरे कराए जाएंगे। शहर और देश का भविष्य शिक्षा में निहित है। 0
हर क्लास में स्टेशनरी का इंतजाम: श्वेता बच्चों के परिवारीजनों को मनाने लगीं कि बच्चों को स्कूल भेजें तो अमित, उनके दोस्तों ने टपकती छत, वायरिंग, वॉटर प्यूरिफायर की मरम्मत करवाई। खिड़कियों में शीशे लगवाने के साथ लॉन को हरा-भरा कर झूले लगवाए। हर क्लास में वाइट बोर्ड के साथ स्टेशनरी का इंतजाम किया। जरूरतमंद बच्चों को कॉपी-किताबें भी दी गईं। इन बदलावों का असर यह हुआ कि बच्चे स्कूल पहुंचने लगे। श्वेता के अनुसार, प्राइमरी के बच्चे पढ़ाई के साथ खेलना भी चाहते हैं। उनकी यह जरूरत झूलों से पूरी हो रही है। समाज बच्चों और स्कूलों के लिए काफी कुछ कर सकता है। कोई पहल करता है तो इसका असर साफ तौर पर दिखता है।
Praveen.Mohta @ timesgroup.com
कानपुर : शहरों में एक तरफ अमीर वर्ग के बच्चों के लिए स्कूलों की चमचमाती बिल्डिंगें होती हैं तो दूसरी तरफ होते हैं सरकारी स्कूल। कहीं बैठने के लिए बेंच नहीं होती तो कहीं बारिश का पानी छत से क्लास में टपकता है। कानपुर के कुछ युवाओं ने इस दर्द को समझा और अपनी मेहनत से एक सरकारी प्राइमरी स्कूल की तस्वीर बदल दी। इसका नतीजा यह हुआ कि पहले जिस स्कूल में बच्चे आने से कतराते थे, वहां से अब बच्चे घर नहीं जाना चाहते।
पेशे से बिजनेसमैन अमित जैन और उनके दोस्त समाज के लिए कुछ करने की हसरत रखते थे। महीनों पहले उन्होंने कानपुर के सरकारी स्कूलों की दशा
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