खाता निष्क्रिय होने के बाद बंद हो गया धन का प्रयोग
महानगर क्षेत्र में वार्ड शिक्षा निधि से शुरू हुआ विद्यालयों के जीर्णोद्धार का काम
उमेश पाठक ’ गोरखपुर मुख्यमंत्री के निर्देश के बाद परिषदीय विद्यालयों के जर्जर भवनों के जीर्णोद्धार की कोशिशें तेज हो गई हैं और इसके लिए धन की व्यवस्था भी की जा रही है। इसी क्रम में विद्यालयों के वार्ड शिक्षा निधि एवं ग्राम शिक्षा निधि में मौजूद धन की तलाश भी की जा रही है। माना जा रहा है कि जिले में विद्यालयों के इन खातों में डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक धन ‘छिपा’ है। इसका विवरण तलब किया गया है और इसका उपयोग विद्यालयों में आधारभूत संरचना के विकास में किया जाएगा। 12011 के बाद से नहीं हो रहा इस निधि का उपयोग: पहले विद्यालयों की मरम्मत से लेकर अन्य सभी कार्यो के लिए धन ग्रामीण क्षेत्र के विद्यालय में ग्राम शिक्षा निधि व शहरी क्षेत्र के विद्यालय में वार्ड शिक्षा निधि में भेजा जाता था। 2011 में निश्शुल्क शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू होने के बाद इसका स्थान विद्यालय प्रबंध समिति (एसएमसी) ने ले लिया। 2011 से सर्व शिक्षा अभियान के तहत सभी बजट एसएमसी में ही जाने लगा। मिड डे मील के लिए बजट अलग खाते में जाता है।वार्ड शिक्षा निधि एवं ग्राम शिक्षा निधि के खातों की अद्यतन स्थिति के बारे में जानकारी जुटाई जा रही है। अनुमोदन मिलने के बाद इस धन का उपयोग किया जाएगा।
भूपेंद्र नारायण सिंह जिला बेसिक शिक्षा अधिकारीवार्ड शिक्षा निधि में मिले 25 लाख
डीएम के निर्देश के बाद नगर क्षेत्र के विद्यालयों से वार्ड शिक्षा निधि के आंकड़े जुटाए गए। 79 विद्यालयों के खाते में करीब 25 लाख रुपये से अधिक धन का पता चला है। इस धन का उपयोग विद्यालयों की दशा सुधारने में हो रहा है। शिक्षा विभाग से जुड़े लोगों की मानें तो ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस निधि में काफी पैसा है, जिसका उपयोग हो सकता है।करीब सात वर्षो से ग्राम शिक्षा निधि व वार्ड शिक्षा निधि में मौजूद धन का उपयोग नहीं किया गया है। इस खाते के निष्क्रिय होने के बाद इसमें मौजूद धन भी निष्प्रयोज्य पड़ा रहा। 2013 में पिपराइच ब्लॉक में डाले गए सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत इन खातों में मौजूद धन की मांग की गई। विभागीय सूत्र बताते हैं कि इस सूचना के बाद एक करोड़ रुपये से अधिक धन वापस किया गया। इसके बाद भी समय-समय पर ग्राम शिक्षा निधि के खाते की जानकारी मांगी गई, लेकिन हर विद्यालय से इसकी जानकारी नहीं मिली। कुछ विद्यालयों के खाते में तीन से चार लाख रुपये तक पड़े हैं।
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