आंगनबाड़ी केंद्रों के बनने की रफ्तार सुस्त, होगी जांच यही नहीं, जो आंगनबाड़ी केंद्र तैयार भी हैं और जहां काम भी हो रहा है, वहां मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं। निदेशालय के ही आंकड़े बताते हैं कि अबतक 70,900 आंगनबाड़ी केंद्रों में बिजली नहीं है। 17,953 आंगनबाड़ी केंद्रों में शौचालय नहीं हैं जबकि 650 आंगनबाड़ी केंद्रों में पीने के पानी के इंतजाम नहीं हैं। यह हाल तब है जबकि बीते साल जुलाई में मुख्य सचिव ने आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थिति को दुरुस्त करने के लिए अंतरविभागीय सहमति पर जोर देते हुए निर्देश दिया था। उन्होंने निर्देश दिए थे कि विद्यालयों में चल रहे आंगनबाड़ी केंद्रों में शिक्षा विभाग काम करवा दे और ग्राम पंचायतें भी इसमें अपने फंड से मदद कर दें। लेकिन उनका यह निर्देश वैसा ही रहा, स्थितियां अब भी वैसी ही हैं।
साल दर साल बढ़ रहा है निर्माण से कम लक्ष्य का आंकड़ा
को उपलब्ध नहीं करवाया गया है। इन आठ जिलों में श्रावस्ती, कानपुर देहात, महराजगंज, मथुरा, बदायूं, अमरोहा, सिद्धार्थनगर और संतरविदास नगर शामिल हैं। 2017-18 में 1577 आंगनबाड़ी केंद्र बनने थे, जिनमें से अबतक 178 नहीं बन पाए हैं। छह जिले, कुशीनगर, गोरखपुर, बदायूं, बहराइच, हरदोई और देवरिया ने उपयोगिता प्रमाणपत्र नहीं दिया है। जबकि 2018-19 में 5993 आंगनबाड़ी केंद्र बनने थे, इनमें से 3971 का निर्माण अबतक अधूरा है।• एनबीटी ब्यूरो, लखनऊ : बच्चों, महिलाओं, गर्भवतियों और किशोरियों में कुपोषण दूर करने के लिए जो आंगनबाड़ी केंद्र बनने थे, उनके बनने की रफ्तार पर सुस्ती हावी है। साल दर साल उस आंकड़े में इजाफा देखा जा रहा है, जिसमें लक्ष्य के सापेक्ष बनने वाले आंगनबाड़ी केंद्रों की संख्या में कमी देखी जा रही है। इस सुस्ती की वजहें तलाशने के लिए शासन जांच करेगा।
बाल विकास सेवा एवं पुष्टाहार निदेशालय से मिली जानकारी के मुताबिक वित्तीय वर्ष 2016-17 में जो आंगनबाड़ी केंद्र बनने थे, उनमें से तीन अबतक पूरे नहीं हुए हैं। यही नहीं, आठ जिले ऐसे हैं, जहां से काम होने के बाद भी उपयोगिता प्रमाणपत्र निदेशालय
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