फतेहपुर : अब परिषदीय शिक्षकों को भी घोषित करें "कोरोना वारियर्स", सोशल मीडिया पर शिक्षकों ने बुलंद की मांग।
फतेहपुर : कोरोना काल में राष्ट्रनिर्माण में योगदान दे रहे परिषदीय शिक्षकों ने भी खुद को कोरोना वायरस का दर्जा दिए जाने की मांग की है। उनका तर्क है कि कोरोना के प्रकोप के दौर में वह अपने परिवार को खतरे में डालकर समाज के बीच रहकर काम कर रहे हैं इसलिए उन्हें भी बीमा कौरव कोरोना से मृत्यु होने पर परिजनों को आर्थिक मदद का भरोसा मिलना चाहिए। शिक्षक अपने संघों से इस मांग को शासन के समक्ष रखने की आवाज उठा रहे हैं।
गत एक जुलाई से परिषदीय स्कूलों के शिक्षक स्कूल पहुंच रहे हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार व प्रकोप के बीच शिक्षकों को अपने व परिवार की चिंता सताने लगी है। इसके लिए सोशल मीडिया व शिक्षकों के समूहों में जबरदस्त चर्चा जारी है।
शिक्षकों की मांग है कि जिस तरह सरकार ने पुलिस, डॉक्टर व सफाईकर्मियों को कोरोना योद्धा का दर्जा देकर उनके परिजनों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है उसी तरह की सुरक्षा उनके परिवारीजनों को भी मिलनी चाहिए। इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि अन्य विभागों के कर्मचारी व अधिकारी तो अपने दफ्तरों में रहकर ही काम करते हैं लेकिन परिषदीय शिक्षक लगातार समाज के बीच रहकर काम कर रहा है। वह अभिभावकों के स्मार्टफोन में दीक्षा ऐप डाउनलोड कराने से लेकर राशन, ड्रेस व पुस्तक वितरण के साथ मिड डे मील की फीडिंग के लिए भी भटक रहा है।
मांग : परिषदीय शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर बुलंद की अपनी मांग स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस की तरह कर रहे समाज के लिए काम
खतरों से खेलकर राष्ट्र निर्माण : 2005 के बाद नियुक्त शिक्षकों का कहना है कि हमारे पास न तो पुरानी पेंशन है और न ही फंड, इसलिए हमारे परिवार की सुरक्षा आवश्यक है। कहते हैं कि यदि दुर्भाग्य से कोरोना के कारण उनकी मौत होती है तो उनके परिजनों की आर्थिक सुरक्षा कैसे हो पाएगी। हम भी तो समाज के बीच रहकर विपत्ति की इस घड़ी में राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहे हैं।
फतेहपुर : कोरोना काल में राष्ट्रनिर्माण में योगदान दे रहे परिषदीय शिक्षकों ने भी खुद को कोरोना वायरस का दर्जा दिए जाने की मांग की है। उनका तर्क है कि कोरोना के प्रकोप के दौर में वह अपने परिवार को खतरे में डालकर समाज के बीच रहकर काम कर रहे हैं इसलिए उन्हें भी बीमा कौरव कोरोना से मृत्यु होने पर परिजनों को आर्थिक मदद का भरोसा मिलना चाहिए। शिक्षक अपने संघों से इस मांग को शासन के समक्ष रखने की आवाज उठा रहे हैं।
गत एक जुलाई से परिषदीय स्कूलों के शिक्षक स्कूल पहुंच रहे हैं। कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार व प्रकोप के बीच शिक्षकों को अपने व परिवार की चिंता सताने लगी है। इसके लिए सोशल मीडिया व शिक्षकों के समूहों में जबरदस्त चर्चा जारी है।
शिक्षकों की मांग है कि जिस तरह सरकार ने पुलिस, डॉक्टर व सफाईकर्मियों को कोरोना योद्धा का दर्जा देकर उनके परिजनों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान की है उसी तरह की सुरक्षा उनके परिवारीजनों को भी मिलनी चाहिए। इसके पीछे वह तर्क देते हैं कि अन्य विभागों के कर्मचारी व अधिकारी तो अपने दफ्तरों में रहकर ही काम करते हैं लेकिन परिषदीय शिक्षक लगातार समाज के बीच रहकर काम कर रहा है। वह अभिभावकों के स्मार्टफोन में दीक्षा ऐप डाउनलोड कराने से लेकर राशन, ड्रेस व पुस्तक वितरण के साथ मिड डे मील की फीडिंग के लिए भी भटक रहा है।
मांग : परिषदीय शिक्षकों ने सोशल मीडिया पर बुलंद की अपनी मांग स्वास्थ्य कर्मियों, पुलिस की तरह कर रहे समाज के लिए काम
खतरों से खेलकर राष्ट्र निर्माण : 2005 के बाद नियुक्त शिक्षकों का कहना है कि हमारे पास न तो पुरानी पेंशन है और न ही फंड, इसलिए हमारे परिवार की सुरक्षा आवश्यक है। कहते हैं कि यदि दुर्भाग्य से कोरोना के कारण उनकी मौत होती है तो उनके परिजनों की आर्थिक सुरक्षा कैसे हो पाएगी। हम भी तो समाज के बीच रहकर विपत्ति की इस घड़ी में राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहे हैं।
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