राजर्षि टण्डन मुक्त विवि में 12 साल बाद पीएचडी को हरी झंडी
उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय से 12 साल बाद फिर पीएचडी की जा सकेगी। राज्यपाल और कुलाधिपति आनंदी बेन पटेल ने कुलपति से चर्चा के बाद हरी झंडी दे दी है। कार्यपरिषद से भी मंजूरी मिल गई है। सितंबर से प्रवेश प्रक्रिया शुरू होने के आसार हैं।
वर्ष 2008 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के पीएचडी संबंधी अध्यादेश की वजह से विश्वविद्यालय में प्रवेश बंद था। कुलपति प्रो. कामेश्वर नाथ सिंह ने इसे शुरू कराने की पहल की। प्रस्ताव को कुलाधिपति तथा प्रदेश सरकार की अनुमति मिलने के बाद कार्यपरिषद की बैठक में रखा गया, जिसे सर्वसम्मति से मंजूरी मिल गई। नए शैक्षिक सत्र में शिक्षाशास्त्र, राजनीति विज्ञान, इतिहास, कंप्यूटर विज्ञान, एग्रीकल्चर, हेल्थ साइंस, कॉमर्स, मैनेजमेंट, हिंदी, संस्कृत और पत्रकारिता में पीएचडी की जा सकेगी।
संस्थान के शिक्षक ही होंगे निदेशक: पूर्व में शोध निदेशक, बाहरी होते थे। अतएव शोध भी बाहर कराए जाते थे। यहां शोधाíथयों को थीसिस जमा करनी होती थी। सिर्फ डिग्री अवार्ड होती थी। नए रेगुलेशन के तहत प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर प्रवेश दिया जाएगा और मुक्त विश्वविद्यालय के शिक्षक ही निदेशक होंगे।
आरडीसी में तय होंगे शोध निदेशक: मुविवि उन्हीं विषयों में पीएचडी कराएगा, जिसमें शिक्षक होंगे। सबसे पहले शोध निदेशक का नाम स्कूल बोर्ड प्रस्तावित करेगा। फिर रिसर्च डिग्री कमेटी (आरडीसी) मुहर लगाएगी। आरडीसी में बाहरी विशेषज्ञ भी शामिल होगा। इसके बाद एकेडमिक काउंसिल और कार्य परिषद की मंजूरी मिलने पर संख्या के अनुसार विषयवार रिक्तियां निकाली जाएंगी। प्रोफेसर को आठ, रीडर को छह और लेक्चरर को चार लोगों को पीएचडी कराने की अनुमति रहेगी।
प्री-पीएचडी अनिवार्य
पीएचडी से पहले आवेदक को इसके लिए परीक्षा में सफल होना पड़ेगा। इसके बाद मेरिट और निर्धारित आरक्षण के आधार पर रजिस्ट्रेशन होगा। शोध के दौरान छह माह की प्री पीएचडी भी अनिवार्य होगी।
पीएचडी के लिए नए सत्र में आवेदन मांगे जाएंगे। आरडीसी की बैठक में शोध निदेशक तय होने के बाद आवेदन की प्रक्रिया शुरू होगी।
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