उच्च शिक्षा : अंकपत्रों के सत्यापन पर अटकी शिक्षकों की जांच
लखनऊ : प्रदेश के राज्य विश्वविद्यालयों और उनसे संबद्ध सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों की जांच की प्रक्रिया अब उनके अंकपत्रों एवं प्रमाणपत्रों के सत्यापन पर आकर अटक गई है। मामला इस पर फंसा है कि सत्यापन के लिए जमा होने वाला शुल्क कौन देगा? शासन ने सत्यापन कराने की जिम्मेदारी उन्हीं संस्थाओं पर डाल दी थी, जहां वे शिक्षक कार्यरत हैं।
उच्चशिक्षा विभाग की तरफ से सभी जिलों में शिक्षकों की जांच के लिए एडीएम की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था जिले स्तर पर जांच में सुविधा के लिए विश्वविद्यालयों के लिए अलग और महाविद्यालयों के लिए अलग कमेटी गठित की गई। शिक्षकों के भौतिक सत्यापन एवं उनके सेवा संबंधी अभिलेखों की जांच के बाद कमेटी ने अंकपत्रों एवं प्रमाणपत्रों का सत्यापन कराने की सिफारिश कर दी। सत्यापन वही संस्था कर सकती है, जिसने उसे जारी किया है । ऐसे में यह जांच प्रक्रिया काफी लंबी हो गई, क्योंकि एक-एक 4. शिक्षक के अंकपत्रों एवं प्रमाणपत्र भिन्न-भिन्न बोर्ड एवं शैक्षिक संस्थाओं की तरफ से जारी किए गए हैं। इस कारण शासन ने जिम्मेदारी शिक्षण संस्थाओं पर डाल दी, जहां वे कार्यरत हैं।
अंकपत्रों एवं प्रमाणपत्रों का सत्यापन करने को संस्थाएं पहले शुल्क जमा कराती हैं । कुछ महाविद्यालयों में प्रबंध तंत्र की तरफ से शिक्षकों से ही इसकी वसूली किए जाने के बाद शिक्षक संगठनों ने विरोध शुरू कर दिया। लखनऊ विवि संबद्ध महाविद्यालय शिक्षक संघ (लुआक्टा) ने तो शासन को पत्र लिखकर एतराज जताया।
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