नई शिक्षा नीति पर अमल को सरकार दे सकती है अलग से फंड, शिक्षा मंत्रालय ने वित्त मंत्रालय को दिया है प्रस्ताव
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सरकार से शिक्षा पर खर्च को दोगुना करने की सिफारिश की गई है। नीति में कहा गया है कि शिक्षा को नई ऊंचाई देने और नीति के अमल के लिए शिक्षा पर कुल सरकारी खर्च की बीस फीसद राशि खर्च की जाए।
नई दिल्ली । नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अमल को लेकर सरकार जिस तरह से पूरी ताकत से जुटी है, उससे साफ है कि इसे आगे बढ़ाने के लिए सरकार की ओर से बजट में अलग से वित्तीय प्रविधान किए जा सकते हैं। शिक्षा मंत्रालय ने इसे लेकर वित्त मंत्रालय को एक प्रजेंटेशन भी दिया है। इसमें नीति के अमल से जुड़ी जरूरतों को प्रमुखता से रखा गया है। वैसे भी देश की आजादी के 75वें साल यानी वर्ष 2022 में जिस तरह स्कूली बच्चों को नई नीति के तहत किताबें मुहैया कराने जैसे लक्ष्य रखे गए हैं, उसमें ज्यादा जरूरत पैसों की होगी।
खास बात यह है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भी सरकार से शिक्षा पर खर्च को दोगुना करने की सिफारिश की गई है। नीति में साफ कहा गया है कि शिक्षा को नई ऊंचाई देने और नीति के अमल के लिए जरूरी है कि शिक्षा पर कुल सरकारी खर्च का बीस फीसद राशि खर्च की जाए। जो मौजूदा समय में कुल सरकारी खर्च का सिर्फ दस फीसद ही है।
मंत्रालय से जुड़े अधिकारियों की मानें, तो नीति में भले ही शिक्षा पर खर्च में दोगुनी बढ़ोतरी की सिफारिश की गई है, लेकिन यह मौजूदा परिस्थितियों में एक साथ करना संभव नहीं है। यह जरूर है कि यह बढ़ोतरी आने वाले सालों में एक क्रमबद्ध तरीके से की जा सकती है। इसकी शुरुआत सरकार की ओर से इसी साल से की जा सकती है।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अमल को लेकर वैसे तो शिक्षा मंत्रालय ने दो क्षेत्रों को चिन्हित किया है। इनमें एक क्षेत्र ऐसा है, जिनमें उन सारी गतिविधियों को शामिल किया गया है, जिनके अमल के लिए पैसों की कोई जरूरत नहीं होगी। बल्कि इन्हें मंत्रालय के स्तर पर प्रशासनिक तरीके से अंजाम दिया जाना है। जबकि दूसरे क्षेत्र में ऐसी गतिविधियों को रखा है, जिसके लिए पैसों की जरूरत होगी।
फिलहाल इनमें जो अमल है, उनमें स्कूली बच्चों को खाने के साथ नाश्ता भी देना, शिक्षकों को प्रशिक्षण देना, स्कूली शिक्षा में प्री-स्कूल को शामिल करना, शिक्षकों के खाली पदों को भरना, शोध को बढ़ावा देना, उच्च शिक्षण संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने सहित ऑनलाइन शिक्षा को मजबूती देने जैसे कदम शामिल हैं।
सरकार इस बार शिक्षा नीति के अमल को लेकर कुछ सतर्क भी है, क्योंकि इससे पहले जो नीति बनाई गई, उस पर पैसों के अभाव में ठीक से अमल नहीं हो सका था। हरेक नीति में शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसद तक खर्च करने की सिफारिश की गई, लेकिन अभी भी शिक्षा पर जीडीपी के चार फीसद के आसपास खर्च किया जा रहा है। वित्तीय वर्ष 2020-21 में शिक्षा का कुल बजट करीब एक लाख करोड़ रुपये था।
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