नई शिक्षा नीति से बदलेगा भाषाओं का पाठ्यक्रम, कई स्तरों पर दिखाई देगा उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रस्तावित बदलाव
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति से बदल जाएगा भाषाओं का भी पाठ्यक्रम
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के तहत उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों में प्रस्तावित बदलाव कई स्तरों पर दिखाई देगा। नए पाठ्यक्रम में गैर प्रायोगिक विषयों में भी व्यावहारिक ज्ञान पर जोर दिया जाएगा। भाषाओं के पाठ्यक्रम में भी इसका असर दिखेगा। नया पाठ्यक्रम पहली जुलाई 2021 से शुरू होने वाले नए सत्र से लागू हो सकता है।
स्नातक स्तर पर लागू होने वाले न्यूनतम समान पाठ्यक्रम के संबंध में शासन से जारी दिशा-निर्देशों के आधार पर ये पाठ्यक्रम तैयार किए जा रहे हैं। शासन ने भाषाओं के पाठ्यक्रम में अनुवाद व स्क्रिप्ट राइटिंग समेत रोजगार से जुड़ी वाली लेखन की अन्य विधाओं को शामिल करने का सुझाव दिया है। इस तरह हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी समेत अन्य भाषाओं के पाठ्यक्रम को अब ज्यादा उपयोगी बनाया जाएगा। तैयार कराए जा रहे पाठ्यक्रम पर फीडबैक लेकर उसमें बदलाव भी किया जाना है। यह जिम्मेदारी उच्च शिक्षा परिषद को दी गई है। परिषद ने ही पाठ्यक्रमों को अपनी वेबसाइट पर अपलोड कर फीडबैक भी मांगे हैं।
नई नीति के तहत 12वीं के बाद उच्च शिक्षा के पहले वर्ष में प्रवेश लेने के इच्छुक छात्र को प्रथम वर्ष के लिए दो मुख्य विषयों के साथ एक संकाय का चुनाव करना होगा। दो प्रमुख विषयों के अलावा उन्हें प्रत्येक सेमेस्टर में किसी भी अन्य संकाय के एक और मुख्य विषय का चुनाव करना होगा। इसके साथ ही एक गौण विषय किसी अन्य संकाय से, एक व्यावसायिक पाठ्यक्रम (अपनी अभिरुचि के अनुसार) तथा एक अनिवार्य सह-शैक्षणिक पाठ्यक्रम का चयन करना होगा। शासन ने नई शिक्षा नीति के क्रियान्वयन और पाठ्यक्रमों की पुनर्संरचना से संबंधित जानकारी भी शिक्षकों को भी देने के निर्देश दिए हैं। इसके लिए सभी विश्वविद्यालयों को रेफ्रेशर कोर्स आयोजित करने के निर्देश दिए गए हैं। मार्च के महीने में होने वाले रेफ्रेशर कोर्स में विश्वविद्यालयों के अलावा महाविद्यालयों के शिक्षक भी शामिल किए जाएंगे।