दम तोड़ चुके शिक्षामित्रों और अनुदेशकों के परिवार सड़क पर, संविदाकर्मियों के नाते नहीं मिल सकेगी कोई मदद
प्रयागराज | कोरोना से जान गंवाने वाले शिक्षामित्रों के परिवार सड़क पर आ गए हैं। प्रयागराज में पिछले एक महीने में सात शिक्षामित्रों का निधन हो गया है, जिनमें चाका की अलवेदा बानो, सोरांव की मिथिलेश मिश्रा आदि भी हैं। इनमें से कुछ कोरोना ड्यूटी के दौरान संक्रमित हो गए थे। एक उच्च प्राथमिक स्कूल की अनुदेशक अल्का कौशल का भी कोरोना से निधन हो गया।
लेकिन निधन के बाद इनके परिवार को आर्थिक मदद देना तो दूर कोई पूछने वाला भी नहीं है। 15 से 20 साल से प्राथमिक स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे शिक्षामित्रों की सेवाएं संविदा पर होने के कारण परिवार के सदस्यों को न तो कोई पेंशन मिलेगी न ही मृतक आश्रित कोटे में नौकरी या कोई आर्थिक मदद।
केस वन- बरईपुर सैदाबाद में तैनात
प्राथमिक विद्यालय शिक्षामित्र कृष्ण मुरारी का निधन एक मई को हो गया। साथियों के अनुसार कोरोना के लक्षण थे लेकिन जांच नहीं कराई थी। वह अपने परिवार के एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। इनका पहले सहायक अध्यापक पद पर समायोजन हुआ था लेकिन समायोजन निरस्त होने पर पुन: शिक्षामित्र हो गए थे । इनकी मृत्यु के बाद पत्नी, पांच पुत्र व एक पुत्री असहाय हो गए हैं। आय का स्रोत नहीं रह गया है।
टू केस ट- उच्च प्राथमिक विद्यालय
संविलियन सिंधौरा प्रतापपुर में कार्यरत शिक्षामित्र नीतू सिंह (39) का निधन कोरोना से 13 मई को हो गया। घर घर में कोरोना चेकिंग के दौरान वह संक्रमित हो गई थीं। पति जैनेन्द्र सिंह खेती करते हैं और एक बेटा इंटर में पढ़ रहा है।
केस थ्री - सोरांव ब्लॉक की शिक्षामित्र
ज्योति यादव का निधन संदिग्ध रूप से कोरोना संक्रमण से 3 मई को हो गया। ज्योति के पति बेरोजगार हैं तथा इनका एक 9 वर्ष का पुत्र है। बुजुर्ग सास-ससुर की जिम्मेदारी भी ज्योति के ऊपर थी।
चाहे शिक्षामित्र हों या अनुदेशक, ये सभी सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे थे। ) और उनके परिवार को सिर्फ इसलिए भूखे मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता क्योंकि उनकी सेवाएं संविदा पर थीं। मेरा अनुरोध है कि असमय निधन पर शिक्षामित्रों और अनुदेशकों के परिवारों को समुचित आर्थिक मदद एवं परिवार के सदस्य को मृतक आश्रित पर नियुक्ति, भले ही उसी पद पर दी जाए। देवेन्द्र श्रीवास्तव, जिलाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक संघ
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