मृत शिक्षकों के आश्रितों के मामले में आठ साल बाद बदलाव
सपा सरकार के मंत्री अहमद हसन ने मृत शिक्षकों का सम्मान बचाने का जो वादा किया, उसे योगी सरकार ने धरातल पर उतारा है। आश्रितों को चतुर्थ श्रेणी के अधिसंख्य पद पर नियुक्ति देने का आदेश सपा शासन का ही है, जिसे अब पलटा है। मृत शिक्षकों के आश्रितों को तृतीय श्रेणी (लिपिक) के अधिसंख्य पद पर नियुक्ति का आदेश हुआ है। इसकी मांग लंबे समय से हो रही थी। स्कूलों में चतुर्थ श्रेणी कर्मियों की जरूरत भी नहीं थी, फिर भी पाल्यों को उन्हीं स्कूलों में अनुचर बनना पड़ा था, जहां उनके पिता या पति शिक्षक थे।
प्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम 26 जुलाई, 2011 को लागू हुआ, उसके पहले तक मृत शिक्षकों के आश्रितों को स्नातक होने पर बीटीसी का प्रशिक्षण दिला शिक्षक पद पर नियुक्ति दी जाती रही। नए नियम से स्नातक के साथ प्रशिक्षण व टीईटी होना अनिवार्य हुआ तो आश्रितों को नियुक्ति में लंबे समय तक असमंजस रहा।
शासन के निर्देश पर 15 फरवरी, 2013 को बेसिक शिक्षा परिषद ने नियुक्ति की गाइडलाइन जारी की। कहा कि आश्रित यदि स्नातक, प्रशिक्षण प्राप्त और टीईटी उत्तीर्ण नहीं है तो उसे शिक्षक पद पर और यदि इंटरमीडिएट है और परिषदीय कार्यालयों में कनिष्ठ लिपिक का पद रिक्त है तो उसकी नियुक्ति लिपिक पद की जा सकती है। आश्रित कक्षा आठ उत्तीर्ण हो व कार्यालय व विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी का पद रिक्त न हो तब भी अधिसंख्य पद पर नियुक्ति की जा सकती है।
ज्ञात हो कि परिषदीय विद्यालयों में चतुर्थ श्रेणी का पद अब तक सृजित नहीं है और कार्यालयों में गिने-चुने लिपिक के पद थे, इसलिए अधिकांश आश्रित चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी ही बन पाए। योगी सरकार इस नियम को पलटने के लिए 20 माह से मंथन कर रही थी। अब इसे पलट दिया गया है।
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