कक्षा 1 से 12 तक कैसा होगा सिलेबस, तैयार करने के लिए जुटाया जा रहा इनपुट
पिछले दिनों संसद की एक समिति ने शिक्षा मंत्रालय और सीबीएसई के वरिष्ठ अधिकारियों को सुझाव दिया कि कोरोना महामारी में स्कूलों के बंद होने के कारण पढ़ाई संबंधी जो अंतर (लर्निंग गैप) पैदा हुआ है, उसे दूर करने के लिए उपग्रह टेलीविजन का इस्तेमाल किया जाए।
नई दिल्ली : नेशनल लेवल पर पहली बार क्लास वन से 12 वीं तक के पाठ्यक्रम को नए सिरे से तैयार करने का निर्णय लिया गया है। अधिकांश राज्यों से NCERT राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद ने चार विभिन्न सेक्टर में राज्य स्तरीय पाठ्यक्रम तैयार करने के लिए कहा है। राज्यों से मिलने वाले पाठ्यक्रम सुझावों को शामिल करते हुए राष्ट्रीय करिकुलम फ्रेमवर्क एनसीएफ तय होगा। शिक्षा मंत्रालय ने कहा है कि राष्ट्रीय पाठ्यक्रम जिला स्तर पर इनपुट के आधार पर तैयार किया जाएगा।
कैसा हो नया सिलेबस
मंत्रालय ने शिक्षा की संसदीय समिति को पिछले दिनों बताया कि पहले राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का पाठ्यक्रम आएगा इसके बाद जिला स्तर पर भी परामर्श किया जाएगा। समिति के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद विनय प्रभाकर सहस्रबुद्धे ने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया से बताया कि कमेटी अपनी रिपोर्ट जुलाई के अंत तक जमा कर देगी। उन्होंने कहा कि इतिहास, भूगोल और साहित्य के सिलेबस में स्थानीय चीजों को भी शामिल करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि नए सिलेबस में नई शिक्षा नीति की झलक देखने को मिलेगी। किताबें बहुत मोटी हों इसकी जरूरत नहीं बल्कि रुचिकर हो इसका ध्यान रखा जाए। प्रत्येक पाठ्यपुस्तक का ई टेस्टबुक भी होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मेरा व्यक्तिगत मानना है कि छात्रों से भी इस बारे में फीडबैक लेना चाहिए।
छात्रों का इनपुट हो सकता है बेहद महत्वपूर्ण
कक्षा नौ में पढ़ने वालो छात्र से क्लास 5 की पाठ्य पुस्तक तैयार करने के लिए कहना चाहिए। मेरे हिसाब से वो पाठ्यपुस्तक बहुत सटीक होगी। उससे हमें एक आइडिया भी मिल जाएगा कि छात्र क्या सोच रहे हैं। दूसरी और तीसरी क्लास के लिए किताबें अमर चित्र कथा जैसी हों। क्यों नहीं कॉमिक जैसे दो- तीन पाठ हों। कुछ पाठ को समझाने के लिए नाटकीय सहारा भी लेना चाहिए। उन्होंने पाठ्यक्रम के लिए लोकल कंटेंट के शामिल करने की भी बात कही। विनय प्रभाकर सहस्रबुद्धे ने कहा कि इतिहास के विषय में 17 पाठ प्राचीन इतिहास से है तो तीन पाठ स्थानीय इतिहास से भी जुड़ा हो। यह सिर्फ इतिहास ही नहीं भूगोल और साहित्य के लिए भी ऐसा किया जा सकता है।
जो सुनने में ही अटपटा लगे
‘छह साल की छोकरी, भरकर लाई टोकरी, टोकरी में आम है, नहीं बताती दाम है। दिखा दिखाकर टोकरी हमें बुलाती छोकरी।’कक्षा एक की एनसीईआरटी की हिंदी की किताब ‘रिमझिम’ के तीसरे अध्याय की इस कविता को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों ने आपत्ति भी दर्ज कराई। विनय प्रभाकर सहस्रबुद्धे ने कहा मेरा मानना है कि जो भी सुनने में अटपटा लगे वो कविता पाठयक्रम में नहीं जानी चाहिए। बिना गंभीर विचार के पाठ्यक्रम में शामिल नहीं करना चाहिए। मैंने सुझाव दिया है कि एक मैकेनिज्म होना चाहिए और जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए।
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