आरटीई के तहत दाखिले से निजी स्कूलों का साफ इनकार : पहले शुल्क प्रतिपूर्ति फिर प्रवेश
■ स्कूलों का पक्ष: शुल्क प्रतिपूर्ति करे शिक्षा विभाग
■ प्रशासन का पक्ष: प्रवेश न लेने पर जाएगी मान्यता
अनएडेड स्कूल एसोसिएशन के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल ने कहा कि कानून का पालन जितना स्कूल प्रबंधन को करना चाहिए उतना ही शिक्षा विभाग को भी करना चाहिए। आरटीई अधिनियम के तहत विभाग स्कूलों को शुल्क प्रतिपूर्ति करें। अधिनियम के तहत फीस की दर तय करें। फिर निजी स्कूल बच्चों का प्रवेश लेंगे।
बेसिक शिक्षा अधिकारी विजय प्रताप सिंह ने कहा कि स्कूलों को आरटीई में चयनित बच्चों का प्रवेश लेना होगा। प्रवेश नहीं लेने वाले स्कूलों नोटिस भेजा जा रहा है। इसके बाद भी प्रवेश नहीं लेते हैं तो ऐसे स्कूलों की मान्यता प्रत्यहरण की कार्रवाई होगी।
लखनऊ : प्राइवेट स्कूलों की मनमानी का खामियाजा शिक्षा का अधिकार अधिनियम (आरटीई) के तहत चयनित बच्चों और अभिभावकों को भुगतना पड़ रहा है। शहर के 67 निजी स्कूलों ने 1583 गरीब बच्चों को प्रवेश देने से मना कर दिया है। कुछ स्कूलों ने बच्चों के अभिभावकों को स्कूल से भगा दिया तो कुछ ने सीधे हाथ जोड़ लिए कि हम आरटीई में प्रवेश नहीं ले सकते। प्राइवेट स्कूलों के मना करने के बाद अभिभावक बेसिक शिक्षा विभाग के चक्कर लगा रहे हैं।
मंगलवार को 50 से अधिक अभिभावक शिक्षा भवन में प्रवेश दिलाने की गुहार लगा रहे थे। सभी को आश्वासन दिया गया कि चयनित अभ्यर्थियों को प्रवेश दिलाया जाएगा।
दरअसल आरटीई के तहत गरीब वर्ग के बच्चों को प्राइवेट स्कूलों में निशुल्क शिक्षा मिलती है। इसके लिए सरकार की ओर से प्रति स्कूल प्रबंधन को हर माह 450 रुपए शुल्क प्रतिपूर्ति के रूप में दिया जाता है। पिछले दो वर्षों से शुल्क प्रतिपूर्ति का भुगतान स्कूलों को नहीं किया गया है और न ही वर्ष 2013 से फीस की दर बढ़ाई है। इसके विरोध में ही निजी स्कूल संचालकों ने आरटीई के तहत प्रवेश लेने से मना कर दिया। प्रवेश नहीं लेने पर 1583 अभिभावकों ने बीएसए से शिकायत की है।
बेसिक शिक्षा विभाग ने 12770 बच्चों का चयन आरटीई में किया है। सभी को विद्यालय आवंटित कर दिया है। परियोजना अधिकारी रेनू कश्यप ने कहा कि अभी तक 5027 बच्चों का प्रवेश ही पोर्टल पर अपडेट हुआ है।
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